कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

‘‘वह प्यार नहीं बल्कि सौदा था... हम सभी एकदूसरे से प्यार के बदले कुछ उम्मीदें पाले हुए थे... मगर दादी ने मुझ से कभी कोई उम्मीद नहीं रखी... उन्होंने फुरसत या जरूरत न होते हुए भी सदा मेरा साथ दिया... मैं कल ही बूआ के घर जा कर उन्हें मना लाऊंगी.’’

‘‘एक बार फिर सोच लो... कहीं अपमानित न होना पड़े... आखिर दादी भी तो इसी ग्रह की प्राणी हैं.’’ मन से उसे चेताया.

‘‘देखा जाएगा... कुछ और मिले न मिले, राज कपूर की फिलम ‘तीसरी कसम’ की तरह मिला एक सबक ही सही... मैं जरूर जाऊंगी...’’ ममता अपने अंतस के विरोध पर विजय पा चुकी थी. अब ममता रमा बूआ के घर जाने की तैयारी करने लगी थी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...