जब तक मालती यहां शहर में रही तब तक ममता और लोकेश का रिश्ता कभी खुशी कभी गम वाली स्थिति में रहा. लोकेश का पत्नी को वक्त देना ममता को नागवार गुजरता... अपने प्रेम और समर्पण का अपमान लगता... वह नाराज हो जाती... कईकई दिनों तक रूठी रहती... फिर किसी दिन लोकेश उस के फ्लैट पर आता... उस के साथ 2-4 घंटे बिताता... उसे मनाता... अपने प्यार का भरोसा दिलाता... ममता खुश हो जाती... मगर 5-6 दिन बाद फिर वही ढाक के तीन पात... कहानी जहां से शुरू होती, घूमफिर कर वहीं आ जाती.
आखिरकार 4 महीने बाद जब मालती वापस गांव लौट गई तब ममता ने राहत की सांस ली. अब लोकेश पर भी कोई बंधन नहीं था. वह पूरी तरह से ममता का हो गया. फिर से वही देर रात तक फोन और चैटिंग का सिलसिला चल निकला. अकसर दोनों की बातें रोमांटिक वीडियो चैट पर ही खत्म होती थीं. लोकेश पहले की ही तरह ममता के सारे नाज उठाने लगा. ममता अपनी जीत पर फूली न समाती थी.
आज ममता बहुत खुश नजर आ रही थी. इसी महीने के दूसरे शनिवार को उस का जन्मदिन था. ममता ने एक यादगार शाम लोकेश के साथ बिताने का पूरा प्लान बना लिया. उस ने तय भी कर लिया था कि इसी खास दिन वह लोकेश से अपने रिश्ते पर सामाजिक मुहर लगाने की बात करेगी. उसे यकीन था कि लोकेश मना नहीं करेगा. ममता बेसब्री से दूसरे शनिवार का इंतजार कर रही थी.
आखिर वह दिन आ ही गया. शुक्रवार की रात 12 बजते ही जैसा कि ममता को यकीन था, लोेकेश का फोन आ गया. ममता ने अदा से इठलाते हुए कौल रिसीव की.