बार बार बजती मोबाइल की घंटी से परेशान हो कर ममता ने स्कूटर रोक कर देखा. जैसा कि उसे अंदेशा था, दादी का ही फोन था. झुंझलाते हुए ममता ने फोन काट कर स्कूटर आगे बढ़ा दिया.
‘‘क्या घड़ीघड़ी फोन कर के परेशान करती रहतीं… आप तो सारा दिन खाली बैठी रहती हैं… लेकिन मुझे तो नौकरी करनी है न… बौस जब छोड़ेगा तभी आऊंगी… प्राइवेट जौब है… बाप की कंपनी नहीं कि मेरी मनमरजी चले…’’ आधे घंटे बाद दनदनाती हुई ममता घर में घुसी और घुसते ही अपनी दादी गायत्री पर बरस पड़ी.
‘‘घड़ी देखी है? रात के 10 बज रहे हैं… फिक्र नहीं होगी क्या?’’ गायत्री आपे से बाहर होते हुए उसे हाथ पकड़ कर घड़ी के सामने ले गई.
‘‘बच्ची नहीं हूं मैं जो घड़ी से बंध जाऊं… और आप? कब तक मैं आप का बोझ ढोती रहूंगी? मैं ने जिंदगीभर आप को पालने का ठेका नहीं ले रखा… बूआजी के पास क्यों नहीं चली जातीं ताकि मैं शांति से रह सकूं…’’ ममता गुस्से में चिल्लाई. उसे दादी की यह हरकत बहुत ही नागवार गुजरी. उस ने उन का हाथ झटक दिया. गायत्री दर्द से बिलबिला उठीं, आंखों में आंसू भर आए. वे चुपचाप अपने बिस्तर पर लेट गईं. उन्हें ममता से इस व्यवहार की जरा भी उम्मीद नहीं थी. शरीर से भी ज्यादा दर्द दिल में हो रहा था.
‘‘यह वही ममता है जिसे पिछले 10 सालों से मैं अपने दिल से लगाए जी रही हूं. बेटेबहू को दुर्घटना में खोने के बाद उन की इस आखिरी निशानी को सहेजने में मैं ने अपनी सारी उम्र झोंक दी और आज जवान होते ही मैं उसे बोझ लगने लगी…’’ गायत्री रातभर सोचती और सिसकती रहीं. आज उन्होंने खाना भी नहीं खाया. ममता ने भी पूछा नहीं.
सुबह होते ही गायत्री ने अपनी बेटी रमा को फोन कर रात की सारी घटना कह सुनाई. रमा ने तुंरत फोन पर ममता को आड़े हाथों लिया. मगर ममता भी रात से भरी बैठी थी. उस ने भी बूआ को खरीखोटी सुना दी. गुस्साती हुई रमा दोपहर तक आईं और शाम होतेहोते गायत्री को अपने साथ ले गईं.
ममता यही तो चाहती थी. अब वह पूरी तरह आजाद थी. उस के और लोकेश के बीच अब कोई दीवार नहीं रहेगी. वह उस के साथ उन्मुक्त विचरण करेगी. लोकेश के साथ की कल्पना करते ही उस के गाल लाल हो गए.
लोकेश उस का बौस है. 40 साल के लोकेश और 25 साल की ममता की जोड़ी कहीं से भी मेल नहीं खाती, मगर इश्क उम्र कहां देखता है. वह तो बस हो जाता है… ममता को भी हो गया.
लोेकेश शादीशुदा है, मगर अपनी पत्नी को यहां शहर में अपने साथ नहीं रखता. वह गांव में उस के मांबाप की सेवा करती है. लोकेश के 2 बच्चे भी हैं, मगर ममता को इन सब से कोई लेनोदना नहीं. वह तो लोकेश की दीवानी है.
कितना प्यार आता है उसे लोकेश पर जब वह उस की बांह छुड़ा कर औफिस से घर के लिए रवाना होती है और वह उसे दीवानों की तरह अपलक ताकता रहता है. लोकेश ने कितनी ही बार इशारोंइशारों में ममता के साथ रात बिताने की इच्छा जाहिर की, मगर दादी के चलते वह उसे स्वीकार नहीं कर सकी थी. मगर अब वह दादी नाम की उस बेड़ी को उतार फेंक चुकी है. अब उस के पांवों को कोई नहीं रोक सकता लोेकेश के पास जाने से.
अभी परसों की ही तो बात है. जब वह औफिस से घर के लिए निकल रही थी. लोकेश ने रोमांटिक होते हुए उस का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया और फिर गुनगुनाया, कि अभी न जाओ छोड़ कर कि दिल अभी भरा नहीं. बस तभी से वह उस की बांहों में पूरी तरह सिमट जाने को बैचैन हो उठी थी.
‘‘लो, मैं आ गई… अब कर लो अपनी हसरतें पूरी…’’ सुबहसुबह ममता को आया देख कर लोकेश चौंक गया. उस के पीछेपीछे आती उस महिला को देख कर ममता भी सकपका गई. उस महिला ने अपनी प्रश्नवाचक नजरें लोकेश पर गड़ा दीं.
‘‘यह ममता हैं… दिल्ली से आई हैं…
आज यहां औफिस में मीटिंग है… मैं ने ही इन से कहा था कि सीधे घर आ जाएं, फिर साथ ही चलेंगे… ममता यह मालती है… मेरी पत्नी…’’ लोकेश ने स्थिति को संभालने की कोशिश की, लेकिन किसी आंतरिक डर के कारण उस की लड़खड़ाती जबान को साफसाफ महसूस किया जा सकता था.
ममता इस अप्रत्याशित स्थिति के लिए तैयार नहीं थी. वह अपनेआप को बहुत अपमानित सा महसूस कर रही थी. उस ने किसी तरह वहां 2 घंटे बिताए और फिर लोकेश के साथ गाड़ी में बैठ गई. उस का मूड उखड़ा हुआ था.
‘‘अरे यार, तुम भी कमाल करती हो… इस तरह धमकने से पहले बता तो देती,’’ लोकेश ने उस का मूड ठीक करने की कोशिश की. ममता चुप रही.
‘‘यह तो मालती जरा सीधीसादी गांव की महिला है वरना बवाल मच जाता,’’ लोकेश ने फिर से बातचीत शुरू करने की कोशिश की.
ममता खिड़की से बाहर देखती रही. औफिस आ चुका था. लोकेश ने गाड़ी पार्किंग में लगा दी.
‘‘शाम को मेरा इंतजार करना, घर छोड़ दूंगा,’’ लोकेश ने उस के गाल थपथपाने चाहे, मगर ममता ने उस का हाथ झटक दिया. आज उस का काम में जरा भी मन नहीं लग रहा था. वह तय भी नहीं कर पा रही थी कि यह लोेकेश से सिर्फ नाराजगी है या उन के रिश्ते में दरार पड़ चुकी है. वह लोकेश को तो चाहती थी, मगर मालती की मौजूदगी को स्वीकार नहीं कर पा रही थी. मालती की सचाईर् से भी वह वाकिफ थी तो फिर दिल में दर्द क्यों महसूस कर रही है?
‘‘आज यहीं रुकने का इरादा है क्या? कहो तो बिस्तर मंगवा लूं?’’ लोकेश की आवाज सुन कर ममता चौंकी. कोई और दिन रहा होता तो उस का प्रस्ताव सुन कर वह भी चुहल पर उतर आती, मगर आज उस का उत्साह बिलकुल फीका पड़ चुका था.
‘‘चलो, तुम्हें घर छोड़ दूं,’’ लोकेश ने कहा तो ममता उस के पीछेपीछे चल दी. घर पहुंचते ही दिनभर से रोका हुआ उस के आंसुओं का बांध टूट गया और वह जोरजोर से रोने लगी. लोकेश ने उसे कस कर जकड़ लिया. ममता के पास कहने को बहुत कुछ था, मगर शब्दों का जैसे अकाल सा पड़ गया था.
वह रोती रही, लोकेश उस की पीठ सहलाता रहा… उस के बालों में हाथ फिराता रहा. उसे चूमता रहा… दर्द और मानसिक पीड़ा से गुजरती हुई वह कब उसे समर्पित हो गई दोनों को ही पता नहीं चला.
‘‘सुनो ममता, प्रेम का रिश्ता बहुत नाजुक होता है.. जरा सी ठेस से टूट जाता है… मालती को किसी तरह का कोई शक नहीं होना चाहिए… हमें बहुत सावधानी रखनी होगी… तुम समझ रही हो न मेरी बात… जब तक वह यहां है, तुम मुझे मैसेज या कौल मत करना… व्हाट्सऐप पर भी जरूरी हो तो ही मैसेज करना…’’ कपड़े पहनते हुए लोेकेश ने उसे हिदायतें दीं और फिर गुनगुनाता हुआ चला गया.
ममता रातभर अपने रिश्ते के बारे में सोचती रही. कभी उसे लोकेश सही लगता तो कभी बहुरुपिया… कभी लोकेश के प्यार पर संशय उभरता तो कभी उस की वास्तविक स्थिति पर दया सी आती… कभी मालती पर तरस आता और खुद पर अभिमान… तो कभी अपनेआप को नितांत बेबस और लाचार समझ कर पलकें भीग जातीं. इसी उहापोह में रात बीत गई. सुबह होते ही आदतन उस का हाथ मोबाइल की तरफ बढ़ गया. रोज सुबह उठते ही पहला ‘गुड मौर्निंग’ का मैसेज लोकेश को भेजने की आदत जो ठहरी. लेकिन कल रात की बात याद आते ही उस के हाथ रुक गए. वह अपनेआप को बंधा हुआ सा महसूस करने लगी. फिर दिमाग को झटका और औफिस के लिए तैयार होने लगी.