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पहले ही अपनी अटैची ले कर संगीता मायके चली गई थी. रवि के मुंबई चले जाने से संगीता की किराए के अलग घर में रहने की योजना लंगड़ा गई. उस के भैयाभाभी तो पहले ही से ऐसा कदम उठाए जाने के हक में नहीं थे. उस की दीदी और मां रवि की गैरमौजूदगी में उसे अलग मकान दिलाने का हौसला अपने अंदर पैदा नहीं कर पाईं. विवाहित लड़की का ससुराल वालों से लड़झगड़ कर अपने भाईभाभी के पास आ कर रहना आसान नहीं होता, यह कड़वा सच संगीता को जल्द ही समझ में आने लगा. कंपनी के गैस्टहाउस में रह रहा रवि उसे अपने पास रहने को बुला नहीं सकता था और संगीता ने अपनी ससुराल वालों से संबंध इतने खराब कर रखे थे कि वे उसे रवि की गैरमौजूगी में बुलाना नहीं चाहते थे.

सब से पहले संगीता के संबंध अपनी भाभी से बिगड़ने शुरू हुए. घर के कामों में हाथ बंटाने को ले कर उन के बीच झड़पें शुरू हुईं और फिर भाभी को अपनी ननद की घर में मौजूदगी बुरी तरह खलने लगी. संगीता की मां ने अपनी बेटी की तरफदारी की तो उन का बेटा उन से झगड़ा करने लगा. तब संगीता की बड़ी बहन और जीजा को झगड़े में कूदना पड़ा. फिर टैंशन बढ़ती चली गई. ‘‘हमारे घर की सुखशांति खराब करने का संगीता को कोई अधिकार नहीं है, मां. इसे या तो रवि के पास जा कर रहना चाहिए या फिर अपनी ससुराल में. अब और ज्यादा इस की इस घर में मौजूदगी मैं बरदाश्त नहीं करूंगा,’’ अपने बेटे की इस चेतावनी को सुन कर संगीता की मां ने घर में काफी क्लेश किया पर ऐसा करने के बाद उन की बेटी का घर में आदरसम्मान बिलकुल समाप्त हो गया. बहू के साथ अपने संबंध बिगाड़ना उन के हित में नहीं था, इसलिए संगीता की मां ने अपनी बेटी की तरफदारी करना बंद कर दिया. उन में आए बदलाव को नोट कर के संगीता उन से नाराज रहने लगी थी.

संगीता की बड़ी बहन को भी अपने इकलौते भाई को नाराज करने में अपना हित नजर नहीं आया था. रवि की प्रमोशन हो जाने की खबर मिलते ही उस ने अपनी छोटी बहन को सलाह दी, ‘‘संगीता, तुझे रवि के साथ जा कर ही रहना पड़ेगा. भैया के साथ अपने संबंध इतने ज्यादा मत बिगाड़ कि उस के घर के दरवाजे तेरे लिए सदा के लिए बंद हो जाएं. जब तक रवि के पास जाने की सुविधा नहीं हो जाती, तू अपनी ससुराल में जा कर रह.’’ ‘‘तुम सब मेरा यों साथ छोड़ दोगे, ऐसी उम्मीद मुझे बिलकुल नहीं थी. तुम लोगों के बहकावे में आ कर ही मैं ने अपनी ससुराल वालों से संबंध बिगाड़े हैं, यह मत भूलो, दीदी,’’ संगीता के इस आरोप को सुन कर उस की बड़ी बहन इतनी नाराज हुई कि दोनों के बीच बोलचाल न के बराबर रह गई. रवि के लिए संगीता को मुंबई बुलाना संभव नहीं था. संगीता को बिन बुलाए ससुराल लौटने की शर्मिंदगी से हालात ने बचाया.

दरअसल, रवि को मुंबई गए करीब 2 महीने बीते थे जब एक शाम उस के सहयोगी मित्र अरुण ने संगीता को आ कर बताया, ‘‘आज हमारे बौस उमेश साहब के मुंह से बातोंबातों में एक काम की बात निकल गई, संगीता… रवि के दिल्ली लौटने की बात बन सकती है.’’

‘‘कैसे ’’ संगीता ने फौरन पूछा.

अनुंकपा के आधार पर उस की पोस्टिंग यहां हो सकती है.’’

‘‘मैं कुछ समझी नहीं ’’ संगीता के चेहरे पर उलझन के भाव उभरे.

‘‘मैं पूरी बात विस्तार से समझाता हूं. देखो, अगर रवि यह अर्जी दे कि दिल के रोगी पिता की देखभाल के लिए उस का उन के पास रहना जरूरी है तो उमेश साहब के अनुसार उस का तबादला दिल्ली किया जा सकता है.’’ ‘‘लेकिन रवि के बड़े भैयाभाभी भी तो मेरे सासससुर के पास रहते हैं. इस कारण क्या रवि की अर्जी नामंजूर नहीं हो जाएगी ’’

‘‘उन का तो अपना फ्लैट है न ’’

‘‘वह तो है.’’

‘‘अगर वे अपने फ्लैट में शिफ्ट हो जाएं तो रवि की अर्जी को नामंजूर करने का यह कारण समाप्त हो जाएगा.’’

‘‘यह बात तो ठीक है.’’

‘‘तब आप अपने जेठजेठानी को उन के फ्लैट में जाने को फटाफट राजी कर के उमेश साहब से मिलने आ जाओ,’’ ऐसी सलाह दे कर अरुण ने विदा ली. संगीता ने उसी वक्त रवि को फोन मिलाया.

‘‘तुम जा कर भैयाभाभी से मिलो, संगीता. मैं भी उन से फोन पर बात करूंगा,’’ रवि सारी बात सुन कर बहुत खुश हो उठा था. संगीता को झिझक तो बड़ी हुई पर अपने भावी फायदे की बात सोच कर वह अपनी ससुराल जाने को 15 मिनट में तैयार हो गई. रवि के बड़े भाई ने उस की सारी बात सुन कर गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘संगीता, इस से ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है कि रवि का तबादला दिल्ली में हो जाए पर मुझे अपने फ्लैट को किराए पर मजबूरन चढ़ाना पढ़ेगा. उस की मासिक किस्त मैं उसी किराए से भर पाऊंगा.’’ रवि और संगीता के बीच फोन पर 2 दिनों तक दसियों बार बातें हुईं और अंत में उन्हें बड़े भैया के फ्लैट की किस्त रवि की पगार से चुकाने का निर्णय मजबूरन लेना पड़ा.

सप्ताह भर के अंदर बड़े भैया का परिवार अपने फ्लैट में पहुंच गया और संगीता अपना सूटकेस ले कर ससुराल लौट आई. रवि ने कूरियर से अपनी अर्जी संगीता को भिजवा दी. उसे इस अर्जी को रवि के बौस उमेश साहब तक पहुंचाना था. संगीता ने फोन कर के उन से मिलने का समय मांगा तो उन्होंने उसे रविवार की सुबह अपने घर आने को कहा. ‘‘क्या मैं आप से औफिस में नहीं मिल सकती हूं, सर ’’ संगीता इन शब्दों को बड़ी कठिनाई से अपने मुख ने निकाल पाई.

‘‘मैं तुम्हें औफिस में ज्यादा वक्त नहीं दे पाऊंगा, संगीता. मैं घर पर सारे कागजात तसल्ली से चैक कर लूंगा. मैं नहीं चाहता हूं कि कहीं कोई कमी रह जाए. यह मेरी भी दिली इच्छा है कि रवि जैसा मेहनती और विश्वसनीय इनसान वापस मेरे विभाग में लौट आए. क्या तुम्हें मेरे घर आने पर कोई ऐतराज है ’’

‘‘न… नो, सर. मैं रविवार की सुबह आप के घर आ जाऊंगी,’’ कहते हुए संगीता का पूरा शरीर ठंडे पसीने से नहा गया था. उस के साथ उमेश साहब के घर चलने के लिए हर कोई तैयार था पर संगीता सारे कागज ले कर वहां अकेली पहुंची. उन के घर में कदम रखते हुए वह शर्म के मारे खुद को जमीन में गड़ता महसूस कर रही थी. उमेश साहब की पत्नी शिखा का सामना करने की कल्पना करते ही उस का शरीर कांप उठता था. रवि के मुंबई जाने से कुछ दिन पूर्व ही वह शिखा से पहली बार मिली थी. उस मुलाकात में जो घटा था, उसे याद करते ही उस का दिल किया कि वह उलटी भाग जाए. लेकिन अपना काम कराने के लिए उसे उमेश साहब के घर की दहलीज लांघनी ही पड़ी.

 

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