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अचानक उस दिन का घटना चक्र उस की आंखों के सामने घूम गया. उस दिन रवि शिखा को एक स्कूल में इंटरव्यू दिलाने ले जा रहा था. रवि का बैंक उस स्कूल के पास ही था. उसे बैंक में कुछ पर्सनल काम कराने थे. जितनी देर में शिखा स्कूल में इंटरव्यू देगी, उतनी देर में वह बैंक के काम करा लेगा, ऐसा सोच कर रवि कुछ जरूरी कागज लेने शिखा के साथ अपने घर आया था. संगीता उस दिन अपनी मां से मिलने गई हुई थी. वह उस वक्त लौटी जब शिखा एक गिलास ठंडा पानी पी कर उन के घर से अकेली स्कूल जा रही थी. वह शिखा को पहचानती नहीं थी, क्योंकि उमेश साहब ने कुछ हफ्ते पहले ही अपना पदभार संभाला था.

‘‘कौन हो तुम  मेरे घर में किसलिए आना हुआ ’’ संगीता ने बड़े खराब ढंग से शिखा से पूछा था.

‘‘रवि और मेरे पति एक ही औफिस में काम करते हैं. मेरा नाम शिखा है,’’ संगीता के गलत व्यवहार को नजरअंदाज करते हुए शिखा मुसकरा उठी थी.

‘‘मेरे घर मेें तुम्हें मेरी गैरमौजूदगी में आने की कोई जरूरत नहीं है... अपने पति को धोखा देना है तो कोई और शिकार ढूंढ़ो...मेरे पति के साथ इश्क लड़ाने की कोशिश की तो मैं तुम्हारे घर आ कर तुम्हारी बेइज्जती करूंगी,’’ उसे यों अपमानित कर के संगीता अपने घर में घुस गई थी. तब उसे रोज लगता था कि रवि उस के साथ उस के गलत व्यवहार को ले कर जरूर झगड़ा करेगा पर शिखा ने रवि को उस दिन की घटना के बारे में कुछ बताया ही नहीं था. अब रवि की दिल्ली में बदली कराने के लिए उसे शिखा के पति की सहायता चाहिए थी. अपने गलत व्यवहार को याद कर के संगीता शिखा के सामने पड़ने से बचना चाहती थी पर ऐसा हो नहीं सका.

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