‘रभीना…’ हां, यही तो नाम था उस लड़की का, जिसे देखदेख वह फिल्मी प्यार में डूब जाता था.
रभीना अभीन के प्रति सीरियस है, पर इस का एहसास कभी भी नहीं होने देती थी.
यह बात अभीन को भी पता थी, पर हर शाम वह गुप्ता स्टोर के पास 5 बजे के करीब खड़ा हो जाता था, ताकि वह ट्यूशन जाती रभीना का दीदार कर सके.
रोज दीदार के नाम पर खड़ा तो नहीं हो सकता था वह गुप्ता अंकल के स्टोर पर, इसलिए कुछ ना कुछ रोज अभीन को दुकान से खरीदना ही पड़ता था.
गुप्ता अंकल सबकुछ जानते हुए भी अनजान बने रहते थे. अभीन अभीअभी 12वीं जमात में तो गया था.
मैथ, फिजिक्स, कैमिस्ट्री के प्रश्नों को रट्टा मारने के बाद वह तुरंत रभीना की याद में डूब जाता था… और याद में भी ऐसे डूबता मानो सच में गोता लगा रहा हो.
रभीना उस की बांहों में, रभीना उस के जोक पर लगातार हंसते हुए.
अभीन रभीना को बस सोचता जाता और अपना होश खोता जाता.
अभीन के इस पढ़ाकू व्यवहार से मां चिंतित रहने लगीं. ऐसी भी क्या पढ़ाई, जो बंद कमरे में पढ़तेपढ़ते बिना खाएपिए सो जाए.
मां को कहां पता था कि अभीन बंद कमरे सिर्फ पढ़ाई नहीं करता. 12वीं की परीक्षा खत्म होतेहोते ही अभीन का प्यार और भी परवान चढ़ने लगा.
अभीन से रभीना कभी बात नहीं करती थी. इन 2 सालों में भी अभीन रभीना से बात नहीं कर पाया. पर इस से अभीन को कोई फर्क नहीं पड़ता था.
अभीन रोज गुप्ता स्टोर से खरीदारी कर आता. उन की दुकान में ऐसी कोई चीज न रही हो, जिसे अभीन ने न खरीदा हो.
अब तो गुप्ता अंकल ही अभीन को बता देते थे कि बेटे आज शर्ट में लगाने वाले बटन ही खरीद ले. बेटे आज हेयर डाई ही खरीद ले. और फिर अभीन ‘दे दो अंकल’ कह कर ट्यूशन जाती रभीना को निहारता निहाल हो जाता कुछ पल के लिए.
अभीन पढ़ने में तो तेज था ही, साथ ही उस ने अपने बेहतर जीवन के सपने भी बुने थे. उस का प्यार जितना फिल्मी था, उतना ही फिल्मी उस के सपने थे.
पर, उस के खूबसूरत सपने में भी खूबसूरत रभीना भी थी. एक अच्छी पैकेज वाली नौकरी, एक मकान और छोटी सी कार में खुद से ड्राइव करते हुए रभीना को बारिश की बूंदों में घुमाना.
अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए अभीन दिनरात पढ़ाई करता था. अभी भी रभीना उस के लिए सपना ही थी. एक कल्पना, जिसे देख कर वह खुश हुआ करता था. जिसे महसूस कर वह अपने सपनों को सच करने के लिए आई लीड को पीटते नींद को भगाने के लिए आंख की पुतलियों पर पानी के छींटों के सहारे पढ़ाई करता था.
पहली कोशिश में पहली ही दफा में अभीन ने इंजीनियरिंग परीक्षा इंट्रेस निकाल ली. अपार खुशी, पर दुख इस बात का था कि अब गुप्ता अंकल की दुकान पर रोज सामान खरीदने का मौका नहीं मिलेगा.
अब वह अपनी रभीना को भी देख नहीं पाएगा, अपनी आंखों से रोज दीदार नहीं कर पाएगा.
अभीन घर वापस आते ही चिंतित हो उठा. उस के कई दिनों से इस तरह के व्यवहार से मातापिता भी चिंतित हो उठे. हमेशा खुश रहने वाला लड़का इतना परेशान क्यों है?
अभीन के होश उड़े हुए थे. वह थोड़ा बेसुध सा रहने लगा. अभीन अब उतावला सा रभीना से बात करने और उस से मिलने के रास्ते तलाशने लगा.
अपने महल्ले में ही रहने वाली रभीना के लिए उस ने कभी ऐसी कोशिश नहीं की थी. उस ने कभी यह बात नहीं सोची थी कि ऐसा भी कभी समय आएगा.
आखिरकार वह अपनी मौसी के घर रहने वाली रेंटर निकली. किसी बहाने से अभीन अपनी मौसी के यहां पहुंच भी गया. पर यह क्या, रभीना दो बार सामने से गुजरी, उस ने ध्यान ही नहीं दिया. गुप्ता अंकल के स्टोर पर तो रोज मुझे देख कर हंसती थी. वह मुझ से कहीं ज्यादा खुश लगती थी, मुझे गुप्ता अंकल के स्टोर पर इंतजार करता देख. पर आज ना जाने ऐसा व्यवहार क्यों कर रही है.
अभीन को रभीना पर गुस्सा भी आ रहा था. ऐसी भी क्या बेरुखी…? आखिर अभीन गुस्सा हो कर या कहें निराश हो कर भारी मन के साथ कब वह अपने घर पहुंच गया, उसे भी पता न चला.
अभीन अभी भी गुस्से में ही था. रात का भोजन नहीं. अगले दिन भी दिनभर कमरे से बाहर नहीं निकला.
अभीन के मातापिता परेशान हो गए. कहीं ऐसा तो नहीं कि अभीन घर से दूर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने जाने से दुखी है.
अभीन माता पिता से, घर से दूर रहने के फायदे और स्वावलंबी बनने की जरूरत पर लंबेलंबे लेक्चर सुनतेसुनते बोर होने लगा, तो घर से बाहर निकला. मातापिता समझे कि अब अभीन समझदार हो गया है. अभीन घर से निकल कर गुप्ता अंकल के स्टोर पर पहुंचा.
2 साल में पहली बार अभीन गुप्ता अंकल के स्टोर पर शाम 5 बजे के बाद मुरझाया चेहरा ले कर पहुंचता है. उसे देख कर गुप्ता अंकल ने पूछा, ’’अरे, तुम ने बताया नहीं कि तुम ने आईआईटी एक बार में ही निकाल ली.’’
’’हां अंकल, निकाल ली,’’ कह कर अभीन चुप हो गया. एकाएक वह अपनी मौसी के घर की ओर बढ़ चला. आज वह रभीना से पूछ ही लेगा कि शादी करोगी या नहीं? और कुछ ही देर में अभीन रभीना के घर के दरवाजे पर था. पर, ये क्या…? उस के दरवाजे पर तो ताला लगा हुआ था. तभी उस की मौसी उसे देख आवाज देती हैं, ’’अरे अभीन, उधर रेंटर के कमरे की ओर क्या कर रहा है? इधर आ…’’
’’आता हूं मौसी. ये आप के रेंटर कहां गए? इन का दरवाजा बंद है. लगता है, मार्केट गए हैं.’’
’’नहीं… नहीं, मार्केट नहीं, वे अपने गांव गए हैं. उन की बेटी है ना रभीना, उस की शादी है अगले हफ्ते.’’
यह सुन कर अभीन अंदर से हिल गया. रोते हुए वह अपने घर की ओर दौड़ा. उस का दिमाग भारी लगने लगता है.
अपने बहते आंसुओं को पोंछते हुए वह दौड़ते हुए चलने लगता है. अभीन को मालूम है कि लोग उसे रोते हुए देख रहे हैं. पर आंसू रोकना उस के बस की बात नहीं थी. सो, उस ने दौड़ कर घर जल्द पहुंचना ही अच्छा समझा और बंद कमरे में जी भर कर रोया.
अभीन रोते हुए थक कर सो गया. रात को सपने में भी आई रभीना. पर कहीं से ऐसा नहीं लगा जैसे रभीना उस की जिंदगी से चली गई हो.
पहले की तरह रभीना अभीन की बांहों में लिपटी उस के बाल को खींचती. अभीन के जोक पर पहले तो चुप रहती और कहती कि यह भी कोई जोक है. और फिर उस के बाद खिलखिला कर हसंती और जी खोल कर हंसती.
अभीन के मन में अभी भी था कि रभीना उस की जिंदगी से चली गई है. पर उस की हिम्मत ही नहीं हुई पूछने की, क्योंकि रभीना तो अभी उस की बांहों में थी.
सुबह तैयार हो कर अपने सपने को पूरा करने के लिए अभीन आईआईटी, दिल्ली के लिए निकल रहा था. पर उस का सपना थोड़ाथोड़ा अधूरा सा लग रहा था, क्योंकि इस सपने में रभीना नहीं थी.