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हम लोगों को बैठक में बैठा कर उस कमरे की ओर बढ़ गई जहां कूलर चल रहा था. 5 मिनट बाद ही एक सुंदर सी औरत, जिस के बाल कंधे तक कटे थे, सिल्क की साड़ी पहने आंखों में अजनबीपन का भाव लिए हमारे सामने खड़ी थी. भैया घर पर नहीं थे, इसलिए मुझे अपना परिचय स्वयं ही देना पड़ा. मैं अपने को रोक नहीं पा रही थी, इसलिए पूछ लिया, ‘‘भाभी, पायल कहां है?’’ ‘‘वही तो आप को यहां बैठा कर गई है,’’ उन्होंने कहा तो विश्वास नहीं हुआ. ‘‘जो लड़की रसोई में बरतन मांज रही थी, वही पायल है?’’ ‘‘हां, आज महरी छुट्टी पर चली गई थी. मु?ो मालूम ही नहीं पड़ा कि कब पायल बरतन मांजने लगी.’’

नई भाभी ने मानो अपनी सफाई दी. ‘‘जरा, उसे बुलाइए तो.’’ भाभी की एक आवाज पर गोदी में बबलू को लिए पायल भागती हुई आई. मैं ने झट से उस की गोद से बच्चे को ले कर पायल को अपने हृदय से लगा लिया. उस के नंगे पैरों में आज कोई पायल न थी. उस के बचपन के न जाने कितने चित्र मेरी आंखों के सामने थे. वह गोलमटोल बच्ची आज दुबलीपतली, शरमीली सी मेरे सामने खड़ी थी. शाम होतेहोते भैया आ गए थे. मैं सब के लिए कुछ न कुछ लाई थी. फ्रौक का पैकेट जब मैं ने पायल की ओर बढ़ाया तो संकोच और खुशी के मिलेजुले भाव उस की आंखों में तैर आए. अगले दिन भाभी ने फिल्म देखने का कार्यक्रम बनाया था. पायल स्कूल से लौट आई थी. मैं ने उस से अपनी लाई पिंक फ्रौक पहन कर तैयार होने को कहा तो उस के सहमे चेहरे पर खुशी के अनगिनत फूल खिल उठे.

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