भाभी ने लाख सेवा की. भैया ने डाक्टरों को दिखाने में कोई कमी न की पर उन्हें जाना था, सो चली गईं. रुन?ान कुछ दिन बहुत उदास रही, फिर धीरेधीरे सब ठीक हो गया. भाभी के फिर बच्चा होने वाला था. नए भाईबहन के आने के एहसास से पायल बहुत खुश थी. फिर वह दिन भी आ गया जिस का सब को इंतजार था पर कितना दुखद दिन था वह. भाभी अस्पताल से वापस न आ पाईं. केस बिगड़ गया था. डाक्टर न बच्चे को बचा पाए, न भाभी को. 5 साल की उस अबोध बच्ची को मैं अपने पास ले आई थी. उस के पैरों में बंधी पायल, जो भाभी मरने से कुछ दिनों पहले ही लाई थीं, की रुन?ान में मैं कभी मां को और कभी निशा भाभी को ढूंढ़ने की कोशिश करने लगती. भाभी की पायल और मां की रुन?ान को मैं ने स्नेह और प्यार की डोर में इस कदर बांध लिया था कि वह एक हद तक उन्हें भूल गई थी. भैया को देख कर दिल में टीस सी उठती. भरी दोपहरी में अकेले जो रह गए थे.
2 साल में 2 सदमे सहे थे, इसलिए टूट से गए थे. काफी समय से मेरे पति का विदेश जाने का प्रस्ताव विचाराधीन था. अब सरकार की ओर से उन्हें 5 साल के लिए कनाडा भेजा जा रहा था. मैं ने भैया से पायल को भी अपने साथ ले जाने की स्वीकृति चाही. तब वे इतना ही कह पाए थे, ‘‘पायल निशा की आखिरी निशानी है. इतनी दूर चली जाएगी तो इसे देखे बिना मैं कैसे जी पाऊंगा?’’ उन के दिल का दर्द इन चंद शब्दों में सिमट कर आ गया था. फिर मैं पायल को ले जाने की जिद नहीं कर पाई थी. 5 साल हम कनाडा में रहे. इस बीच भैया के पत्र आते रहे. भैया ने दूसरा विवाह कर लिया था.
पायल के 2 छोटेछोटे भाई हो गए थे. 5 साल बाद जब स्वदेश लौटने का समय आया तो मन में सब से बड़ी इच्छा पायल को देखने की थी. वह गोलमटोल गुडि़या अब कैसी लगती होगी? उसे मेरी याद भी होगी या नहीं? ऐसे ही न जाने कितनी बातें रास्तेभर सोचती रही थी. मुंबई पहुंचने के बाद सब से पहले भैया के पास दिल्ली जाने का फैसला किया. भैया को आश्चर्य में डालने के लिए बिना सूचना के ही दिल्ली पहुंच गए. जुलाई की उमसभरी दोपहरी में दिल्ली तप रही थी. भैया के घर पहुंच कर द्वार पर दस्तक दी. जो शायद कूलर की आवाज में ही दब कर रह गई. दरवाजा अंदर से बंद नहीं था. हाथ से ठेलते ही खुल गया. रसोईघर से पानी गिरने की आवाज आ रही थी. सोचा, भाभी वहीं होंगी, सो सीधी वहीं चली गई. एक दुबलीपतली 11-12 साल की लड़की मैली सी फ्रौक पहने नल के पास बैठी बरतन धो रही थी. मु?ो अचानक देख कर जल्दी से हाथ धो कर खड़ी हो गई.