बरबाद बगीचे में जरा घूम के देखो
कोई तो खिले फूल जरा झूम के देखो
ऐसे तो वो तुम से सदा रूठे ही रहेंगे
तुम भी करो कुछ मान, जरा रूठ के देखो
साए तो साथ हैं, वो आएं या न आएं
खुद के ही दायरे में जरा घूम के देखो
रहबर हों, रहनुमा हों, कभी काम न आएं
खुद अपने रास्तों को जरा मोड़ के देखो
पहले से वो डरे हैं, उन्हें क्यों डराइए
जिंदा हैं किस तरह से, जरा पूछ के देखो
ये लोग न जाने कहां आएंगे, जाएंगे
इन को भी रास्तों में जरा छोड़ के देखो.
- राकेश भ्रमर
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल
(1 साल)
USD48USD10

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन
(1 साल)
USD100USD79

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...
सरिता से और