बरबाद बगीचे में जरा घूम के देखो
कोई तो खिले फूल जरा झूम के देखो
ऐसे तो वो तुम से सदा रूठे ही रहेंगे
तुम भी करो कुछ मान, जरा रूठ के देखो
साए तो साथ हैं, वो आएं या न आएं
खुद के ही दायरे में जरा घूम के देखो
रहबर हों, रहनुमा हों, कभी काम न आएं
खुद अपने रास्तों को जरा मोड़ के देखो
पहले से वो डरे हैं, उन्हें क्यों डराइए
जिंदा हैं किस तरह से, जरा पूछ के देखो
ये लोग न जाने कहां आएंगे, जाएंगे
इन को भी रास्तों में जरा छोड़ के देखो.
– राकेश भ्रमर
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