नाकामियों के अंधेरों का
हसास नहीं होता
अगर आंखों में हो सितारा
मंजिलों के नूर का
कुछ वक्त की रुसवाई थी
कुछ खुद से ही फासले थे
वरना साहिल था आंखों में
मेरे भी जनून का
वो ख्वाबों का तसव्वुर
वो सपनों की सरजमीं
माना कि उन दिनों
मैं खुद से दूर था
चलो बना भी लिया आशियां
और गुंचे भी खिल गए
गर बस गई खिजां यहां
तो ये किस का कुसूर था.
- उर्मिला जैन ‘प्रिया’
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल
(1 साल)
USD48USD10
सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन
(1 साल)
USD100USD79
सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...
सरिता से और





