किसी की आंख से आंसू
नहीं निकले तो क्या निकले
समंदर से मोती
नहीं निकले तो क्या निकले

किसी को दे दिया कुछ तो
इसे एहसान मत मानो
जबां से बोल दो मीठे
नहीं निकले तो क्या निकले

भले ही मंजिलों तक तुम
किसी के साथ मत जाओ
तुम साथ हमदम के
नहीं निकले तो क्या निकले

बहुत खुश हो बहारों में
खिजाएं भी रुलाएंगी
हवा के साथ बागों में
नहीं निकले तो क्या निकले

बहुत कुछ ढूंढ़ते हो
कहीं आंखें नहीं टिकतीं
निगाहों से किसी की गर
नहीं फिसले तो क्या फिसले

अकेले हो सफर में
दूर तक रुलाएगा मौसम
‘भ्रमर’ के साथ राहों में
नहीं निकले तो क्या निकले.
– राकेश भ्रमर
 

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