कुछ प्रतिरूप
मेरी कल्पना में विचरते हैं
कुछ क्षणभंगुर
ख्वाब बन कर बिखरते हैं
हौले से बढ़ कर जब
नाकामियां गले लगाती हैं
जिंदगी दर्द से थोड़ी सी
छटपटाती है
तन कर खड़ी होती
फिर साहस जुटा कर
नई दिशा की ओर
पग फिर चहकते हैं
जीवन नए तानेबाने बुनता
अपने अंदर नए अनुभव चुनता
कुछ करने की आरजू लिए
बीज दांवपेंच के बिखरते हैं
मंजिल पर सुकूं सा
आभास होता है
थोड़ा पाया, ज्यादा खोने का
एहसास होता है
फिर पीड़ा मन की
जलने लगती है
फिर हासिल की
चाह पलने लगती है
तब शुरू होता है
एक कमजोर संघर्ष
जिस में लड़ते हुए
काया के रूप बिखरते हैं
कुछ प्रतिरूप
मेरी कल्पना में विचरते हैं
कुछ क्षणभंगुर
ख्वाब बन कर बिखरते हैं.
- सिद्धू शेंडे
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल
(1 साल)
USD48USD10

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन
(1 साल)
USD100USD79

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...
सरिता से और