वक्त की आंधी ने
सुनामी को धीमा कर दिया
बचपन, लड़कपन
तेज रफ्तार सा गुजर गया
आज वक्त थमता हुआ
नजर आ रहा है
बाग के कोने में रोती
लड़की का जख्म चीख रहा है
अपनों के हाथों मरती
ममता का गला घुट रहा है
खुशी इस तरह धूमिल हुई कि
रेत पर पड़े पत्थर चुभने लगे
रेगिस्तान में खड़ा
कीकर का पेड़ भी दम तोड़ने लगा
जमीं बंजर हुई गरम लू से
जल कर राख सी खड़ी
खाकी वर्दी वाले नाकाम नजर आए
अब खौलता नहीं खून उन का
आंधी को रोकने के लिए?
उन का खून सूख चुका है
इस रेगिस्तान की तरह
बंजर जमीं पर खड़े
कंकाल के ढांचे की तरह
कौन जन्म लेगा इन कत्लों की रफ्तार को
कम करने के लिए
गाड़ने से इन कातिलों को
आए ऐसा समुद्रीसुनामी तूफान
जो बिखेरे फूल बगीचों में
दूर तक नजरें डालो तो इंसानियत दिखे
उस लड़की के चेहरे पर
अनबुझी मुस्कराहट खिले
तो मिलेगी पनाह उस जलाई गई जान को
जो भटक रही अपनी मां का आंचल छोड़ बहुत दर्द होता है
आंखों को स्याह होते देख कर
बहुत दर्द होता है, उस मां की आंख से
खून टपकते हुए देख कर
क्या वक्त करवट लेगा,
नारी के दम पर थरथराएंगे वहशी दरिंदे
नारी का रौद्र रूप देख कर
समय पलटेगा, हाथ बांध कर तो देखो
नामोनिशान मिटा दो दरिंदों का
जख्म पर मरहम भी लगाएगी
और इंतजार भी करेगी नारी
जख्म के सूखने का...
- नीलम
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन