Hindi Poetry : घनघोर अंधेरा छाया था.
मन मेरा अत्यधिक घबराया था.

जब कहने सुनने को,
मेरे हिस्से अनगिनत चुनौतियाँ आयी थीं.

जब मेरे अंदर ही अंधकार व्याप्त था,
तो खुद से ही रोशनी की किरण ढूंढने का वक्त आया था.

जब खुद के अलावा किसी और का साया ना दिख पाया था,
तो समझ का ताला तभी तो मिल पाया था.

पंख खोलने का तभी वक्त आया था, जब मेरा ही प्रतिबिम्ब मुझे दिख पाया था,
तभी तो समय का प्रवाह, कर्म के पथ से मिल पाया था.

सूरज की रोशनी का प्रतिबिंब तभी मिल पाया था,
हार और जीत में जीत का होना संभव हो पाया था.

सही मायनों में मेरे जीवन का अर्थ,
उद्देश्य मिल पाया था.

लेखिका : अनुपमा आर्या

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
  • देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
  • 7000 से ज्यादा कहानियां
  • समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
 

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
  • देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
  • 7000 से ज्यादा कहानियां
  • समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
  • 24 प्रिंट मैगजीन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...