अमलतास के रंग से

पीली हुई धरती की चुनर

दिन सुर्ख लाल हुए

मुसकरा उठे जब गुलमोहर.

हवाओं ने जैसे बांध लिए

घुंघरू अपने पांव में

देखो, लौट आया है

वसंत मेरे गांव में.

भ्रमरों के संग गाने को

खोल रही हैं कलियां अधर

पी-कहां पुकारती है

पपीहा कहीं पागल हो कर.

हार जाना चाहता मन

स्वप्निल नयनों के दांव में

देखो, लौट आया है

वसंत मेरे गांव में.

हर पत्ता छुपा रहा है

बूढे़ पीपल की उम्र

हर मन यही चाहता है

जीवन जाए यहीं ठहर.

रात मदमातीइठलाती यहां

चांदनी की छांव में

देखो, लौट आया है

वसंत मेरे गांव में.

– के. मनोज सिंह

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