जमाने से कुछ खफा से हैं आजकल,
या जमाना ही खफा है हम से आजकल.
जिस मोहब्बत को पाने के लिए,
कायनात का शुक्रिया करते थे हम,
उसी को कोसते नहीं थकते हम आजकल,
मोहब्बत नहीं मिली होती तो शायद,
एक ही गम होता मोहब्बत न पाने का,
जमाने भर से लड़े जिस के लिए,
उसी मोहब्बत की तलवार से कट गए हम
तभी तो जमाने से खफा से हैं आजकल
या जमाना ही खफा है हम से आजकल.
– स्मृति भोला
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