वो
जब पड़ोस वाली
सड़क वाली
बस स्टाप वाली
औफिस वाली
बाज़ार वाली
के बीच
हंसी ठिठोली
नैन मटक्का
कर
रात में
घर वाली के
बगल लेटता है
तो सोचता है
ज़िन्दगी कितनी नीरस है
मेरे तो भाग्य ही फूट गए।
और वो
जब सारा दिन
खाली घर
सूनी दीवारों
रिसते नल
बिखरे बर्तनों
के बीच
भूतनी सी
टकराती
घूमती
थकती
रात में
घरवाले के
बगल लेटती है
तो सोचती है
ज़िन्दगी में कितना सुख है
मुझ सी भाग्यवान भी कोई है?
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