कल की सियाह रात का चर्चा किये बगैर
जायेंगे नहीं चांद से शिकवा किये बगैर
अब देखिये लेते हैं वो किस किस से दुश्मनी
महफ़िल में आ गये जो हम पर्दा किये बगैर
दीवानों सी सूरत लिए फिरते हैं शहर में
मानेंगे नहीं वो हमें रुसवा किये बगैर
क्या क्या न गज़ब हो गया काफ़िर की याद में
मस्जिद से लौट आये हम सजदा किया बगैर
मालूम है के शेख जी तौबा के साथ साथ
रहते नहीं हैं हुस्न का चर्चा किये बगैर
ये शायरी नहीं है मदारी का खेल है
मिलता नहीं है पेट को मजमा किये बगैर
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