खुले आसमान में करे परवाज
हौसले हर पंछी में नहीं होते
सिर्फ बहार ही तो नहीं बाग में
ठूंठ भी यहां कम नहीं होते
सीप में बने मोती
हर बूंद के ऐसे मौके नहीं होते
आंख में आंसू होंठों पर मुसकान
ऐसे दीवाने भी कम नहीं होते
जहां जाएं रोने के लिए
ऐसे कोने हर घर में नहीं होते
मरने के तो बहुत हैं
मगर जीने के बहाने कम नहीं होते
बयां कर शिकायत
हर गिरते को संभालने वाले नहीं होते.
– रेखा चंद्रा
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...
सरिता से और