जब राजनाथ सिंह जी ने राफेल के पहियों के नीचे नींबू रखे थे तब से मेरी टोने टोटकों में आस्था बढ़ रही है. इसके पीछे एक व्यक्तिगत अनुभव या संक्षिप्त कहानी यह है कि अपनी जवानी के दिनों में मेरा दिल माया नाम की एक सहपाठिन पर आ गया था लेकिन वह राम को चाहती थी. राम और माया में फूट डालने मैंने और मेरे चंद लंपट दोस्तों ने साम, दाम, दंड, भेद सब का सहारा लिया लेकिन दोनों पर कोई फर्क नहीं पड़ा. माया के चालचलन को लेकर मेरे गुट ने खूब दुष्प्रचार किया और एकाध बार अकेले में ले जाकर राम की खूब कुटाई भी की पर वे अपने लैला मजनू छाप प्यार के रास्ते से हटने तैयार नहीं हुए.

फिर तीन पत्ती के एक विशेषज्ञ दोस्त की सलाह पर मैं तत्कालीन नामी तांत्रिक से मिला जो चुटकियों में लड़कियां वश में करवा देने में मशहूर था. इस तांत्रिक ने 51 रु लिए और पानी की एक शीशी अभिमंत्रित कर दी कि इसे जैसे भी हो माया को पिला दो फिर वह मीरा की तरह तुम्हारे भजन गाने लगेगी. पर माया को पानी पिलाऊं कैसे यह वैसी ही समस्या थी जैसी 11 दिन से महाराष्ट्र में देखने में आ रही है कि सरकार बने कैसे. उन दिनों में स्कूल में लंच बौक्स और पानी की बोतल ले जाने का रिवाज नहीं था. लड़के लड़कियां टोंटी वाले नल से मुंह लगाकर पानी गुड़कते थे. अब मैं वह बोतल अगर टंकी में उड़ेल देता तो पूरी लड़कियों के मेरे वश में हो जाने का अंदेशा था जिससे अफरा तफरी मचती और मेरा स्कूल का दरवाजा पार करना भी मुहाल हो जाता.

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कई दिनों तक वह शीशी बस्ते में डाले, मैं माया के आगे पीछे डोलता रहा लेकिन बात नहीं बनी तो एक दिन हिम्मत करते मैंने उसे शीशी देकर कहा तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं….. लेकिन यह पानी पी लो. मैं उस वक्त हैरान रह गया जब उसने बिना किसी विरोध के शीशी का पानी अपने हलक में उड़ेल लिया और फिर मुस्कुराकर बोली इसे ले जाकर उस तांत्रिक बाबा को वापस कर देना, तुम से पहले और छह लड़के मुझे यह पानी पिला चुके हैं पर मुझे कुछ नहीं हुआ मेरी तो रग रग में राम है. प्यार खुद अपने आप में इतना बड़ा टोटका है कि इसके आगे ये फुटपाथिए जतन कहीं नहीं ठहरते.

उस दिन मैं बिना किसी त्याग तपस्या के और बिना भूखे प्यासे रहे स्कूल के नीम के ठूंठ के नीचे ही बुद्धत्व को प्राप्त हो गया और तंत्र मंत्र बगैरह से मेरा भरोसा जो दरअसल में था ही नहीं हमेशा के लिए उठ गया. लेकिन राजनाथ सिंह जी ने राफेल के पहियों के नीचे नींबू रखे तो मेरी टोने टोटकों में अनास्था करोड़ों भारतीयों की तरह डगमगाने लगी जिसे जैसे तैसे मैंने स्वरचित तर्कों और बचे खुचे आत्मविश्वास के दम पर संभाल लिया और पूर्ववत परिवार का पेट पालने के अपने कर्तव्य में लग गया जो नोटबंदी के बाद से और दुष्कर काम हो चला है .

पिछले दिनों दिल्ली के प्रदूषण पर जो बवंडर मचा वह मेरी भी चिंता का विषय नहीं था लेकिन उत्तरप्रदेश के एक मंत्री जी का यह बयान पढ़कर कि यह यज्ञ से दूर हो सकता है मेरे दिमाग में भी अंधविश्वास का कीड़ा फिर कुलबुलाने लगा इसके बाद तो दो और केंद्रीय मंत्रियों ने अचूक नुस्खे सुझाए. स्वास्थ मंत्री बोले गाजर खाओ तो दूसरे ने अपना संसदीय ज्ञान बघारा कि सुबह संगीत सुनो तो स्वस्थ रहोगे यानी दिल्ली की जहरीली हवा ब्रह्मा द्वारा निर्मित फेफड़ों पर बेअसर रहेगी .

इस पर भक्त लोग खामोश रहे उन्होंने इन तीनों में से किसी का मज़ाक नहीं उड़ाया. क्योंकि ये राम दल के सैनिक हैं लेकिन जाने क्यों मुझे लग रहा है कि इन्ही भक्तों ने पिछले साल तक  दिल्ली के मुख्यमंत्री अरिविन्द केजरीवाल के सर्दी जुकाम खांसी और मफलर तक का खूब  मज़ाक उड़ाया था. केजरीवाल कोई दुर्वासा नहीं हैं जो बात बात पर श्राप दें लेकिन अब पूरी दिल्ली खांस और कराह रही है तो लगता है, एक बददुआ जो उन्होंने दी ही नहीं दिल्ली के लोगों को लग गई है. द्रौपदी ने दुर्योधन का मजाक उसे अंधे का बेटा कहते उड़ाया था इसके बाद उसकी जो दुर्दशा और महाभारत हुआ उसे सब जानते हैं.

जमाना और दौर दुआओं बददुआओ का ही है बाकी तो करने किसी के पास कुछ बचा नहीं है . स्टोरी का मोरल यह है कि कभी किसी भले आदमी का मजाक महज इसलिए नहीं उड़ाना चाहिए कि वह पौराणिकवादी नहीं है. लेकिन टोने टोटके जरूर करते रहने चाहिए और इसके लिए अब कानून बनना चाहिए कि प्रदूषित शहरों के लोग कमाएंगे खाएंगे. बाद में पहले यज्ञ हवन करेंगे और सुबह उठते ही गाजर खाते संगीत सुनेंगे और इसमें भी सुंदरकांड को प्राथमिकता देंगे. और वाकई लोग प्रदूषण से छुटकारा बिना इन टोटकों के चाहते हैं तो उन्हें अरविंद केजरीवाल से माफी मांगना चाहिए.

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यह बड़ा आध्यात्मिक टोटका है जिसे आजमाकर घंटों में दिल्ली प्रदूषण मुक्त हो सकती है अगर इस व्यंग्य को आप 21 लोगों को फारवर्ड करेंगे तो 2 दिन में ही दिल्ली और आसपास के इलाकों में धूप चमकने लगेगी और फारवर्ड नहीं करेंगे तो फिर से खांसने और झींकने मजबूर हो जाएंगे .

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