जो संबंध संसद का वाकआउट से है, वह देव उठने का शादियों से है. देव उठे नहीं कि बैंड बजे नहीं. खबर सुन कर घोडि़यां हिनहिनाने लगती हैं, उस से ज्यादा भाईबंधु हिनहिनाने लगते हैं. शहनाई क्या बजती है, वरवधू के मांबाप के दिलों की धड़कनें बजने लगती हैं. और जब तक सारा जमाना उन धड़कनों को सुन न ले, किसी को चैन नहीं पड़ता.

शादी में वास्तविक समस्याएं कम होती हैं. जो होती हैं, उन का वास्तविकता से कोईर् संबंध नहीं होता. शादी में समस्याएं उत्पन्न की जाती हैं. विघ्न पड़ने के बाद ही कोई शादी निर्विघ्न संपन्न होती हैं. शादी वाले घरों में हर चेहरा तनाव से ढोलक की तरह तना हुआ होना चाहिए, वरना कई संशय खड़े हो जाते हैं. खासकर लड़की वालों के चेहरे जरा भी ढीले नहीं पड़ने चाहिए, ताकि लड़के वाले जब चाहे उन्हें बजा सकें और उस से उत्पन्न होने वाली गूंज से अपना उठा हुआ ईगो शांत कर सकें.

वैसे, समस्या की शुरुआत तभी हो जाती है जब पहली बार लड़के या लड़की वाले देखने आते हैं. आसपड़ोस, निकटस्थ लोगों के कान एंटीना की तरह 4 इंच लंबे हो कर घर की तरफ मुड़ जाते हैं, यह संकेत पकड़ने के लिए कि रिश्ता पक्का हुआ या नहीं. बिना सैटेलाइट ही ये सूक्ष्म संकेत सूत्र पकड़ लेते हैं कि क्याक्या खामियां निकाल गए हैं, डिमांड क्या रखी है. अलबत्ता तो इन की कृपा से रिश्ता पक्का होता नहीं, क्योंकि विवाह योग्य लड़केलड़की के घरों के पड़ोसियों के यहां पत्थर बहुतायात में पाए जाते हैं, जिन के निशाने अचूक होते हैं. होता हुआ रिश्ता पड़ोसियों के सीने पर सांप लोटने की तरह होता है.

अगर रिश्ता पक्का हो जाए, तो ये उसी दिन से कमर कस लेते हैं. कमर भी किस कदर कसते हैं, इस का राज तब खुलता है जब शादी की तारीख के लिए हलदी की गांठ खुलती है.

भाईबंधु हैं, तो यह उन का जन्मसिद्घ अधिकार है कि वे शादी को निर्विघ्न संपन्न न होने दें. विवाह की जो वेदी सजी है, उस में वे अपनी ओर से परेशानियों का घी डालते रहें ताकि उस से उठने वाला धुआं लड़केलड़की के मांबाप की आंखों में पानी ला दे.

यह पानी भाईबंधुओं के मन की शांति का तरल स्रोत है, जो उन के कलेजों पर ठंडे छीटों के रूप में पड़ता है. विघ्नहर्त्ता भले ही गणेश होंगे, लेकिन इन विघ्नकर्ताओं की मानमनुहार के बिना गणेशजी भी शादी संपन्न नहीं करवा सकते. अब तो इन के नखरे देख कर गणेशजी भी इन्हीं से आग्रह करते होंगे.

खैर, ज्योंज्यों शादी का दिन नजदीक आता है, इन भाईबंधुओं की एकाएक चालढाल बदल जाती है. रूठेरूठे से सरकार नजर आने लगते हैं. उन की उत्सुकता, जिज्ञासा इस बात को ले कर रहती है कि शादी में मनाने के लिए कब, कौन तशरीफ ला रहा है. उसे वहीं धोबीपछाड़ देने की पूरी तैयारी रहती है. जब शादी वाला इन्हें शादी की तारीख की खबर देता है, तो ये इस मुद्रा में आ जाते हैं जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत व पाक के प्रधानमंत्री आमनेसामने पड़ गए हों.

इन की पहले से ऐंठी हुई गरदनें और ऐंठ जाती हैं, चेहरे पर न के दृढ़भाव उभर आते हैं, मुंह से बोल नहीं फूटते, गोया एकाएक भारत-पाक वार्त्ता अकारण बंद हो गईर् हो. समझदारों को दरअसल संकेत होते हैं कि ये अब शादी में बिना नाजनखरे उठाए, शादी वाले को बिना झुकाए, पगड़ी कदमों में रखवाए बिना आने से रहे. फिर न्योते के बदले में शादी में न आने की शिकायतों का लंबाचौड़ा डौजियर सौंप देते हैं, जिसे देख हतप्रभ शादी वाला सोचता है, न्योता दे कर गलती कर दी या शादी कर के.

खैर, ये बिना जैड प्लस के ही अतिविशिष्ठ की श्रेणी में आ जाते हैं. फिर अगले कुछ रोज तक शादी वाले घर के लोग मिल्खा बने सुबहशाम इन के यहां दौड़ लगाते रहते हैं. आज यह रस्म है, कल तिलक ले कर जाना है, परसों तिलक आएगा, शाम को तेलबान है, आज मेहंदी है, रात को लेडीज संगीत है, रसोई का सामान लाना है. उफ , बहुत काम बाकी हैं, कड़ाही चढ़नी है, टैंट तनना है, कार्ड बंटने हैं.

ज्योंज्यों रस्में निकट आती हैं, इन की मूंछें बढ़ते सैंसेक्स की तरह ऊपर खड़ी होने लगती हैं. वरवधू के मांबाप रुपए की तरह कमजोर और ये महाशय डौलर की तरह मजबूत हो लेते हैं. जरा सा झुकने को तैयार नहीं होते. इन के यहां इतनी हाजिरी देनी पड़ती हैं, जितनी तो सरकारी बाबू एक लाइसैंस के लिए भी नहीं लगवाते. गोया, उन से कोई संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थायी परिषद की सदस्यता पर मुहर लगाने का अनुरोध किया जा रहा हो.

अंत में वरवधू के मांबाप की घोर पराजय घोषणा के बाद ये शादी में तशरीफ ले भी आते हैं, मगर पूरी शादी के दौरान मुंह, पूरियों से ज्यादा, फूले रहते हैं. चाल में एहसान करने के भाव होते हैं, मानो नहीं आते तो लड़की कुंआरी बैठी रहती, इन्हें उपस्थित न पा कर बरात दरवाजे से लौट जाती, लड़के की ताउम्र शादी नहीं होती. बिना वजह की कटुता इतनी ज्यादा होती है कि शादी की रसदार मिठाइयां भी इन के मिजाज में मिठास नहीं घोल पातीं.

भाईबंधु, चाचाताऊ, देवरजेठ, देवरानीजेठानी इत्यादि यों तो निकटतम रिश्ते के नाम हैं, मगर शादीब्याह में इन से अधिकतम दूर भी कोई नहीं होता. गणेश विघ्नहर्ता हैं, तो ये विघ्नकर्ता हैं. इन का एकमात्र उद्देश्य शादी निर्विघ्न, निरापद, आराम से निबटवाने में मदद करने के बजाय अड़चनें पैदा करना होता है. जिस दिन शादी निबटती है, लड़की के मांबाप का तो कारगिल फतह हो जाता है. इधर, ये सफलता के टाइगर हिल पर अपनी मूंछों का झंडा इस सार्वजनिक घोषणा के साथ गाड़ देते हैं कि गणेश विघ्नहर्ता हैं, तो हम विघ्नकर्ता हैं.

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