‘‘बच्चे को एलकेजी में भरती करने वाला मुझे फार्म तो दीजिए,’’ मैं ने अंगरेजी स्कूल के क्लर्क से कहा.
पहले तो उस ने मुझे घूरा, फिर पूछा, ‘‘किसे भरती कराना है?’’
‘‘कहा न, बच्चे को,’’ मैं ने जवाब दिया.
‘‘कहां है आप का बच्चा?’’ मेरे आसपास नजर दौड़ाते हुए उस ने पूछा.
‘‘घर में,’’ मैं ने बताया.
‘‘जिसे भरती होना है, उसे घर छोड़ आए. जाइए, उसे ले कर आइए.’’
‘‘भला क्यों...?’’
‘‘पहले मैं उस बच्चे का इंटरव्यू लूंगा. अगर वह भरती होने लायक होगा, तब फार्म दूंगा. यही प्रिंसिपल साहब का आर्डर है,’’ उस ने खुलासा करते हुए बताया.
‘‘भरती करना है या नहीं, यह फैसला कौन लेगा?’’
‘‘प्रिंसिपल साहब. वे आप का इंटरव्यू ले कर फैसला करेंगे.’’
‘‘बच्चे के इंटरव्यू की बात तो गले उतरती है, लेकिन मेरा इंटरव्यू... बात कुछ जमी नहीं,’’ मैं ने हैरानी जाहिर की.
‘‘देखिए, यह अंगरेजी स्कूल है, कोई खैराती या सरकारी नहीं. हमें बच्चे के साथसाथ स्कूल के भले का खयाल रखना पड़ता है, इसीलिए बच्चे के साथसाथ उस के मातापिता का भी इंटरव्यू लिया जाता है.’’
‘‘बात समझ में आई या नहीं? अब जाइए और बच्चे को ले कर आइए.’’
मैं जातेजाते धड़कते दिल से पूछ बैठा, ‘‘किस भाषा में इंटरव्यू लेते हैं प्रिंसिपल साहब?’’
‘‘अंगरेजी स्कूल में दाखिला कराने आए हो और यह भी नहीं जानते?’’
इतना सुनते ही मेरे दिल की धड़कनें बढ़ गईं. मुझे अंगरेजी नहीं आती थी. आज पता चला कि अंगरेजी स्कूल में बच्चे को भरती कराना कितना मुश्किल काम है, खासतौर पर मेरे लिए.
घर पहुंचा, तो मेरी बीवी ने पूछा, ‘‘हो गई भरती?’’
‘‘अभी नहीं,’’ मैं ने ठंडे दिल से कहा.
‘‘क्यों...’’ बीवी की आवाज में उलझन थी.