‘‘चलिए, आप का खाना लगा देती हूं,’’ कह कर वह नीचे आ गई. लाइट आ चुकी थी. अजय चुपचाप बैठ कर खाना खाने लगा. इस दौरान अजय ने कोई बात नहीं की. कविता ने स्वयं को सामान्य दर्शाते हुए पूछा, ‘‘भाभी और अपूर्व कैसे हैं?’’
‘‘ठीक हैं,’’ बस इतना ही कहा अजय ने.
‘‘अच्छा भैया, अब मैं सोने जा रही हूं. अनन्या सो रही है आप के कमरे में,’’ कविता अपने रूम में आई. कोई आहट पा कर जैसे ही मुड़ी, पीछे अजय दरवाजा बंद कर रहा था. कविता चौंक पड़ी, गुस्से से बोली, ‘‘भैया, यह क्या है? आप यहां से फौरन चले जाइए.’’
अजय ने कुछ नहीं कहा और उस की तरफ हाथ बढ़ा कर उसे अपनी ओर खींच लिया. फिर बैड पर जबरदस्ती लिटा दिया. कविता ने अजय की गिरफ्त से छूटने की भरपूर कोशिश की लेकिन कविता की नाजुक देह ज्यादा देर तक अजय की बलिष्ठ देह का विरोध नहीं कर पाई. कविता छटपटाती रह गई. तनमन छलनीछलनी हो गया. इस कुकर्म के बाद अजय कमरे से निकल गया. कविता व्यथित, परेशान, भीतरबाहर जैसे एक आग में झुलसतीसुलगती रही. उसे लग रहा था जैसे कमरे की छत, दीवारें आदि सब भरभरा कर ऊपर आ गिरेंगी. एक भयानक भूकंप, सर्वस्व उजाड़ देने वाला भूकंप सबकुछ तहसनहस कर जैसे उस के ऊपर से गुजर गया था. मन हुआ इसी समय विनय को फोन कर के उस के बड़े भाई की चरित्रहीनता के बारे में बताए. कविता ने अपने कपड़े व्यवस्थित किए, मुंह पर पानी के छींटे मारे तब जा कर उसे थोड़ा होश आया. सारी रात क्रोध व घृणा में उठतीबैठती रही.