विनय भी सिर झुकाए चुपचाप बैठ गया था. कविता ने ही फिर कहना शुरू किया, ‘‘मैं ने पतिव्रत धर्म का हमेशा पूरे मन से पालन किया है. कभी परपुरुष के बारे में नहीं सोचा लेकिन मैं अपने नारीत्व के साथ छल नहीं करूंगी. मातृत्व मेरा अधिकार है और मैं इस बच्चे को जन्म दूंगी.’’
‘‘नहीं कविता, मैं इस बच्चे को स्वीकार नहीं करूंगा. तुम एबौर्शन करवा लो. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. हम दोनों नई शुरुआत करेंगे.’’
‘‘नहीं, मैं इस बच्चे को नहीं मारूंगी. तुम्हें यह स्वीकार नहीं है तो मैं ही घर छोड़ कर चली जाऊंगी.’’
काफी देर तक दोनों में बहस हुई. फिर कविता ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं चली जाती हूं. जो भी कुछ हुआ उस में इस नन्ही जान का क्या कुसूर है?’’ कविता ने चुपचाप खड़े हो कर पलभर सोचा, फिर अपना सामान बैग में भरने लगी. उसे जाता देख विनय सिसक उठा, ‘‘रुक जाओ कविता, मुझे माफ कर दो, यह तुम्हारा घर है, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊंगा.’’
‘‘मैं भी नहीं जाना चाहती लेकिन मेरा बच्चा इस दुनिया में जरूर आएगा.’’
‘‘ठीक है, मुझे मंजूर है जैसा तुम चाहो.’’‘‘अच्छी तरह सोच लो विनय, यह सारी उम्र की बात है.’’
विनय ने कविता का हाथ पकड़ लिया, ‘‘मैं पलभर को स्वार्थी हो गयाथा. क्रोध में आ कर पता नहीं क्याक्या तुम्हें कह बैठा. तुम मेरी हो. तुम्हारा अंश भी मेरा है. मैं उस का पालनपोषण करूंगा तो वह मेरा ही होगा न. मैं ने तुम्हारा दिल बहुत दुखाया है. मुझे माफ कर सकोगी न?’’
‘‘लेकिन क्या आप उस के बाप के बारे में जानना चाहेंगे?’’ पूछतेपूछते कविता का स्वर कांप गया.