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उस का आग्रह देख कर पता नहीं क्यों वह मना नहीं कर पाईं…उस बच्चे के साथ 2 घंटे कैसे बीत गए पता ही नहीं चला. इस बीच न तो वह रोया न ही उस ने विशेष परेशान किया. नमिता ने उस के सामने अपने पोते के छोडे़ हुए खिलौने डाल दिए थे, उन से ही बस खेलता रहा. उस के साथ खेलते और बातें करते हुए उन्हेें अपने पोते विक्की की याद आ गई. वह भी लगभग इसी उम्र का था…उस बच्चे में वह अपने पोते को ढूंढ़ने लगीं.

उस दिन के बाद तो नित्य का क्रम बन गया, जिस दिन वह नहीं आता, नमिता आवाज दे कर उसे बुला लेतीं…बच्चा उन्हें दादी कहता तो उन का मन भावविभोर हो उठता था.

धीरेधीरे शेफाली भी उन के साथ सहज होने लगी थी. कभी कोई अच्छी सब्जी बनाती तो आग्रहपूर्वक दे जाती. उन्हें अपने पैरों में दवा या तेल मलते देखती तो खुद लगा देती, कभीकभी उन के सिर की मालिश भी कर दिया करती थी…कभीकभी तो उन्हें लगता, इतना स्नेह तो उन्हें अपने बहूबेटों से भी नहीं मिला, कभी वे उन के नजदीक आए भी तो सिर्फ इतना जानने के लिए कि उन के पास कितना पैसा है तथा कितना उन्हें हिस्सा मिलेगा.

शशांक भी आफिस जाते समय उन का हालचाल पूछ कर जाता…बिजली, पानी और टेलीफोन का बिल वही जमा करा दिया करता था. यहां तक कि बाजार जाते हुए भी अकसर उन से पूछने आता कि उन्हें कुछ मंगाना तो नहीं है.

उन के रहने से उन की काफी समस्याएं हल हो गई थीं. कभीकभी नमिता को लगता कि अपने बच्चों का सुख तो उन्हें मिला नहीं चलो, दूसरे की औलाद जो सुख दे रही है उसी से झोली भर लो.

विशाल ने उन्हें कई बार चेताया कि किसी पर इतना विश्वास करना ठीक नहीं है पर वह उन को यह कह कर चुप करा देतीं कि आदमी की पहचान उसे भी है. ये संभ्रांत और सुशील हैं. अच्छे परिवार से हैं, अच्छे संस्कार मिले हैं वरना आज के समय में कोई किसी का इतना ध्यान नहीं रखता.

‘‘आंटीजी, आप तैयार हो गईं…ये आटो ले आए हैं,’’ शेफाली की आवाज आई.

शेफाली की आवाज ने नमिता को एक बार फिर विचारों के बवंडर से बाहर निकाला.

‘‘हां, बेटी, बस अभी आई,’’ कहते हुए पर्स में कुछ रुपए यह सोच कर रखे कि मैं बड़ी हूं, आखिर मेरे होते हुए पिक्चर के पैसे वे दें, उचित नहीं लगेगा.

जबरदस्ती पिक्चर के पैसे उन्हें पकड़ाए. पिक्चर अच्छी लग रही थी…कहानी के पात्रों में वह इतना डूब गईं कि समय का पता ही नहीं चला. इंटरवल होने पर उन की ध्यानावस्था भंग हुई. शशांक उठ कर बाहर गया तथा थोड़ी ही देर में पापकार्न तथा कोक ले कर आ गया, शेफाली और उसे पकड़ाते हुए यह कह कर चला गया कि कुछ पैसे बाकी हैं, ले कर आता हूं.

पिक्चर शुरू भी नहीं हो पाई थी कि बच्चा रोने लगा.

‘‘आंटी, मैं अभी आती हूं,’’ कह कर शेफाली भी चली गई…आधा घंटा हुआ, 1 घंटा हुआ पर दोनों में से किसी को भी न लौटते देख कर मन आशंकित होने लगा. थोड़ीथोड़ी देर बाद मुड़ कर देखतीं पर फिर यह सोच कर रह जातीं कि शायद बच्चा चुप न हो रहा हो, इसलिए वे दोनों बाहर ही होंगे.

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यही सोच कर नमिता ने पिक्चर में मन लगाने का प्रयत्न किया…अनचाहे विचारों को झटक कर वह फिर पात्रों में खो गईं….अंत सुखद था पर फिर भी आंखें भर आईं….आंखें पोंछ कर इधरउधर देखने लगीं….इस समय भी शशांक और शेफाली को न पा कर वह सहम उठीं.

बहुत दिनों से नमिता अकेले घर से निकली नहीं थीं अत: और भी डर लग रहा था. समझ में नहीं आ रहा था कि वे उन्हें अकेली छोड़ कर कहां गायब हो गए, बच्चा चुप नहीं हो रहा था तो कम से कम एक को तो अब तक उस के पास आ जाना चाहिए…धीरेधीरे हाल खाली होने लगा पर उन दोनों का कोई पता नहीं था.

घबराए मन से वह अकेली ही चल पड़ीं. हाल से बाहर आ कर अपरिचित चेहरों में उन्हें ढूंढ़ने लगीं. धीरेधीरे सब जाने लगे. वह एक ओर खड़ी हो कर सोचने लगीं, अब क्या करूं, उन का इंतजार करूं या आटो कर के चली जाऊं.

‘‘अम्मां, यहां किस का इंतजार कर रही हो?’’ उन को अकेली खड़ी देख कर वाचमैन ने उन से पूछा.

‘‘बेटा, जिन के साथ आई थी, वह नहीं मिल रहे हैं.’’

‘‘आप के बेटाबहू थे?’’

‘‘हां,’’ कुछ और कह कर वह बात का बतंगड़ नहीं बनाना चाहती थीं.

‘‘आजकल सब ऐसे ही होते हैं, बूढे़ मातापिता की तो किसी को चिंता ही नहीं रहती,’’ वह बुदबुदा उठा था.

वह शर्म से पानीपानी हो रही थीं पर और कोई चारा न देख कर तथा उस की सहानुभूति पा कर हिम्मत बटोर कर बोलीं, ‘‘बेटा, एक एहसान करोगे?’’

‘‘कहिए, मांजी.’’

‘‘मुझे एक आटोरिकशा में बिठा दो.’’

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उस ने नमिता का हाथ पकड़ कर सड़क पार करवाई और आटो में बिठा दिया. घर पहुंच कर आटो से उतर कर जैसे ही उन्होंने दरवाजे पर लगे ताले को खोलने के लिए हाथ बढ़ाया तो खुला ताला देख कर हैरानी हुई…हड़बड़ा कर अंदर घुसीं तो देखा अलमारी खुली पड़ी है तथा सारा सामान जहांतहां बिखरा पड़ा है. लाखों के गहने और कैश गायब था…मन कर रहा था कि खूब जोरजोर से रोएं पर रो कर भी क्या करतीं.

नमिता को शुरू से ही गहनों का शौक था. जब भी पैसा बचता उस से वह गहने खरीद लातीं…विशाल कभी उन के इस शौक पर हंसते तो कहतीं, ‘मैं पैसा व्यर्थ नहीं गंवा रही हूं…कुछ ठोस चीज ही खरीद रही हूं, वक्त पर काम आएगा,’ पर वक्त पर काम आने के बजाय वह तो कोई और ही ले भागा.’

अगले भाग में पढ़ें- इतने दिन साथ रहने के बावजूद उसे कभी उन पर शक नहीं हुआ.

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