कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

राजीव ने अपने कपड़े अटैची में रखे और मां पिताजी के पांव छू अटैची उठा घर से बाहर आ गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह कहां जाए, तभी सौरभ का खयाल आते ही वह आटो पकड़ कर सौरभ के घर की ओर चल दिया.

सौरभ को राजीव ने सारी स्थिति बता दी तो वह बोला, ‘घर से तू चला आया, अब करेगा क्या?’

‘कुछ न कुछ तो करूंगा ही. चांदनी को पाने के लिए अपनी अलग पहचान बनाना बहुत जरूरी है.’

शाम को राजीव काफी हाउस में चांदनी से मिला और सारे हालात के बारे में उसे बताया. घर से अलग होने की बात सुन कर चांदनी स्तब्ध रह गई. वह नाराजगी जाहिर करते हुए बोली, ‘राजीव, तुम्हें घर नहीं छोड़ना चाहिए था. घर में रह कर भी तो तुम पिताजी को मना सकते थे.’

‘पिताजी मानने वाले नहीं थे, फिर अजय भैया के वक्त भी वह कहां माने थे? आखिरकार भाई को ही झुकना पड़ा था. मैं नहीं चाहता कि हमारे प्यार का भी वही हश्र हो इसलिए मुझे घर छोड़ना पड़ा.’

‘किंतु राजीव, मैं नहीं चाहती कि मेरी खातिर तुम अपने घर वालों को छोड़ो. लोग तो मुझे ही बुरा कहेंगे न.’

‘जिसे जो कहना है, कहने दो. मुझे किसी की परवा नहीं है. मैं अपना घर छोड़ सकता हूं चांदनी, किंतु तुम्हें नहीं छोड़ सकता.’

‘फिर अब क्या करने का इरादा है?’

‘अब नौकरी तलाश करूंगा. तुम निराश मत हो चांदनी, सब ठीक हो जाएगा.’

एक माह के अंदर ही राजीव को नौकरी मिल गई. एक प्रोफेशनल कालिज में वह बी.बी.ए. के छात्रों को पढ़ाने लगा. शाम के समय 9वीं और 10वीं के बच्चे उस के पास ट्यूशन पढ़ने आने  लगे थे. इस से अच्छी आमदनी होने लगी थी उसे. कुछ दिन बाद राजीव ने सौरभ के घर के पास ही एक फ्लैट किराए पर ले लिया. अब वह बहुत खुश था. उस का एम.बी.ए. करना सार्थक हो गया था. धीरेधीरे घर की आवश्यक वस्तुएं जुटाने में 3 माह बीत गए.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...