चांदनी का जवाब पा कर राजीव का मन मयूर नाच उठा था किंतु साथ ही उसे यह चिंता भी थी कि पिताजी प्रेम विवाह के सख्त खिलाफ थे. मंझले भैया एक लड़की को चाहते थे पर पिताजी ने उन की एक न सुनी और भाई का विवाह अपनी पसंद की लड़की से कर दिया. चांदनी के साथ उस के प्रेम की बात उन के कानों में पड़ेगी, तब पता नहीं उन पर क्या प्रतिक्रिया हो. आखिर उस ने सबकुछ समय पर छोड़ दिया.
राजीव का एम.बी.ए. पूरा हो चुका था. अब वह पिताजी के साथ पूरी तरह उन के व्यवसाय में व्यस्त हो गया. एक दिन उस के पिताजी ने काम के सिलसिले में उसे देहरादून जाने के लिए कहा और बोले, ‘देखो बेटे, देहरादून में मेरे बचपन का दोस्त लक्ष्मीकांत रहता है. तुम उन्हीं के घर ठहरना. लक्ष्मीकांत का भी देहरादून में ज्वैलरी का व्यवसाय है. तुम अपने काम में उन की मदद लोगे तो तुम्हारा काम जल्दी हो जाएगा.
देहरादून पहुंच कर राजीव को लक्ष्मीकांत की कोठी तलाशने में कोई कठिनाई नहीं हुई. उसे देख कर वह बहुत प्रसन्न हुए. ड्राइंगरूम में राजीव को बैठा कर उन्होंने आवाज लगाई, ‘अरे, पूजा बेटी, राजीव आ गया है. चाय ले कर आओ.’
थोड़ी देर बाद परदा हटा और ट्रे हाथ में लिए पूजा ने कमरे में प्रवेश किया. लक्ष्मीकांतजी ने राजीव से पूजा का परिचय कराया तो वह धीरे से ‘हैलो’ बोली और नजरें नीची किए चाय बनाने लगी.
दोनों को चाय दे कर जब वह जाने को हुई तो लक्ष्मीकांत बोले, ‘पूजा बेटी, राजीव हमारे घर दोचार दिन रुकेगा. यह पहली बार देहरादून आया है, इसे घुमाना तुम्हारा काम है.’
‘ठीक है, पापा. आज शाम को मैं इन्हें सहस्रधारा ले कर जाऊंगी.’
नाश्ता कर के राजीव और लक्ष्मीकांत काम के सिलसिले में बाहर चले गए. शाम को वह वापस लौटा तो पूजा तैयार खड़ी थी. दोनों कार से सहस्रधारा पहुंचे. सहस्रधारा का प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता था.
पूजा व राजीव दोनों पानी के बीच में पड़े पत्थरों पर बैठ गए.
राजीव ने पूछा, ‘पूजा, आजकल तुम क्या कर रही हो?’
‘एम.ए. करने के साथसाथ मैं ज्वैलरी डिजाइनिंग का कोर्स कर रही हूं ताकि पापा के व्यवसाय में उन का हाथ बटा सकूं,’ पूजा बोली थी, ‘और तुम क्या कर रहे हो?’ उस ने राजीव से पूछा.
‘मैं ने एम.बी.ए. किया है. अब पिताजी के व्यवसाय में हाथ बंटा रहा हूं.’
‘एम.बी.ए. कर के तुम कोई दूसरा काम भी कर सकते हो. किसी कंपनी में नौकरी कर सकते हो. मार्केटिंग कर सकते हो. टीचिंग भी कर सकते हो.’
‘सलाह तुम अच्छी दे रही हो किंतु मुझे यह सब करने की क्या जरूरत है, जब पिताजी का जमाजमाया व्यवसाय है.’
‘तुम्हारे बारे में तो मैं नहीं जानती पर अपने बारे में मैं बता सकती हूं कि तुम्हारी जगह अगर मैं होती तो कम से कम कुछ महीनों तक अपने बलबूते अपने पैरों पर खड़ी होने का प्रयास जरूर करती. मुझे पता तो चलता कि मेरे अंदर कितनी क्षमता है,’ पूजा एक पल के लिए रुकी थी फिर बोली, ‘जीवन में अपनी अलग पहचान बनानी भी बहुत जरूरी है. संघर्ष करने से इनसान के जीवन में निखार आता है. पापा का व्यवसाय तो कभी भी अपनाया जा सकता है.’
राजीव पूजा की बातों से बहुत प्रभावित हुआ था. शाम हो चली थी. घर जाने के लिए दोनों उठ खड़े हुए. अभी राजीव ने कदम आगे बढ़ाया ही था कि अचानक पत्थर पर से पैर फिसल गया. इस से पहले कि वह लड़खड़ा कर गिरता, पूजा ने उसे संभाल लिया था. दर्द की तीखी लहर उस के शरीर में दौड़ गई थी.
‘लगता है पांव में मोच आ गई है,’ राजीव ने अपना पांव मसलते हुए कहा.
‘एक मिनट ठहरो,’ पूजा तेजी से कार की ओर लपकी और वहां से दवा का डब्बा उठा लाई. दर्द की दवा पैर पर मल कर उस ने क्रेप बैंडेज बांध दी. पूजा ने ड्राइविंग सीट संभाल ली. राजीव उस के बराबर में जा बैठा और वह दक्षता से कार चलाती हुई उसे घर ले आई थी.
3 दिन देहरादून में रुक कर राजीव अपने घर लौट आया. अपने मित्र का हालचाल जानने के बाद पिताजी बोले, ‘राजीव, पूजा तुम्हें कैसी लगी?’
‘पिताजी, पूजा बहुत अच्छी लड़की है. बहुत बुद्धिमान और साहसी. आजकल ज्वैलरी डिजाइनिंग का कोर्स कर रही है.’
‘मुझे पूरी उम्मीद थी कि पूजा तुम्हें पसंद आएगी,’ पिताजी बोले, ‘बेटे, मैं और लक्ष्मीकांत तुम्हारा और पूजा का विवाह करना चाहते हैं.’
‘क्या? पिताजी, ऐसा कैसे हो सकता है?’ राजीव ने हैरानी से मां और पिताजी को बारीबारी से देखा.
‘क्यों नहीं हो सकता? पूजा अच्छी लड़की है. घर अच्छा है, फिर तुम्हें और क्या चाहिए?’ पिताजी ने उसे घूरा.
राजीव की उन से कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं हुई. वह उठ कर अपने कमरे में आ गया.
मां राजीव के कमरे में आईं और उस के समीप बैठ कर स्नेह से बोलीं, ‘मुझे बता बेटा, क्या बात है? क्या पूजा तुझे पसंद नहीं?’
उस दिन सबकुछ बताने का समय आ गया था, राजीव ने मां की तरफ देखा. हिम्मत जुटा कर धीमे स्वर में बोला, ‘मां, मैं चांदनी से प्यार करता हूं. यही सच है और एक न एक दिन आप सब को इस सचाई को स्वीकारना ही पड़ेगा.’
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‘तू जानता है राजीव, तेरे पिताजी यह बात कभी नहीं मानेंगे. उन के दिल में तेरे विवाह को ले कर कितने अरमान हैं. क्या बीतेगी उन के दिल पर, जब उन्हें यह पता चलेगा?’ मां के चेहरे पर चिंता की लकीरें सिमट आईं.
‘मां, पिताजी के अरमानों के लिए क्या मैं अपने प्यार को कुर्बान कर दूं?’
‘मेरे लिए किसी को कोई कुर्बानी देने की जरूरत नहीं है राजीव की मां,’ पिताजी ने कमरे में आते हुए कहा और कुरसी खींच कर बैठते हुए बोले, ‘देखो राजीव, पिता होने के नाते तुम्हें समझाना मेरा फर्ज है. विवाह कोई हंसीखेल नहीं. जीवन भर का बंधन है. तुम्हारा भाई अजय भी यह गलती करने जा रहा था पर वक्त रहते वह संभल गया. देखो, मैं कितनी अच्छी बहू लाया हूं उस के लिए. आज वह कितना खुश है.’
‘भैया संभले नहीं थे, आप से डर गए थे इसलिए आप के आगे झुक गए. पर मैं झुकने वाला नहीं. अपने प्यार का बलिदान नहीं कर सकता मैं.’
‘अच्छा बताओ, तुम कितने दिन से चांदनी को जानते हो?’ राजीव की ओर देख पिताजी व्यंग्यात्मक लहजे में बोले.
‘लगभग 6 माह से,’ धीमे स्वर में राजीव बोला.
‘और मैं ने पूजा को बचपन से बड़ा होते देखा है. 15 साल की थी वह जब उस की मां चल बसी थीं. तभी से उस ने अपने घर को संभाल लिया था. उस में बहुत ठहराव है…’
अपने पिताजी की बात बीच में काटते हुए राजीव बोला, ‘आप और मां एक बार चांदनी को देख तो लीजिए. पिताजी, चांदनी बहुत सुंदर है. उस के संस्कार बहुत ऊंचे हैं, जबकि आधुनिक परिवेश में पलीबढ़ी पूजा हमेशा जींस टाप पहने रहती है. ऐसी लड़की हमारे घर में कैसे सामंजस्य बैठा पाएगी?’
‘देखो राजीव, किसी के पहनावे से उस के संस्कारों का पता नहीं चलता है. चांदनी एक साधारण परिवार की लड़की है. मैं दावे से नहीं कह रहा हूं पर इस बात की संभावना हो सकती है कि वह तुम से नहीं तुम्हारे पैसे से प्यार करती हो.’
अपने पिताजी की बात पर राजीव गुस्से से भन्ना कर बोला, ‘आप समझते हैं कि दुनिया में पैसा ही सबकुछ है, भावनाएं कुछ भी नहीं. आप को अपने पैसे पर इतना ही घमंड है तो मैं अभी यह घर छोड़ कर चला जाता हूं. आप को अपने पैरों पर खड़ा हो कर दिखाऊंगा. आप का पैसा और रुतबा न होने पर भी चांदनी मुझ से ही शादी करेगी, देख लीजिएगा.’
‘अगर ऐसा हुआ तो मैं खुद अपनी बहू को घर ले कर आऊंगा,’ पिताजी बोले.
अगले भाग में पढ़ें – ‘जिसे जो कहना है, कहने दो. मुझे किसी की परवा नहीं है…