रविवार की शाम रैस्तरां में बैठा चाय की चुस्कियों के बीच देश की समस्याओं के बारे में एक आम आदमी की तरह चिंतन कर परेशान हो रहा था. अचानक ही मेरा एक प्रशासनिक अधिकारी मित्र पंकज आ गया. थोड़ी देर दीनदुनिया की बातें होने के बाद मैं ने पूछा, ‘‘यार, आजकल बहुत व्यस्त रहते हो, इतने बड़े पद पर ऐसे क्याक्या कार्य करने होते हैं?’’

वह बोला कि इस पद पर कोई काम नहीं रहता. मुख्य काम साधने का रहता है.

मैं ने कहा, ‘‘साधने का काम, यह क्या होता है? समझा नहीं.’’

‘‘साधने का मतलब वजूद वालों को साधते रहना,’’ उस ने कहा.

मैं ने कहा, ‘‘फिर सरकारी काम का क्या करते हो? समाज कल्याण की, विकास की योजनाओं को कौन देखता है? स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों की व्यवस्था कौन देखता है? आम लोगों की छोटीछोटी समस्याओं का क्या होता होगा?’’

तो वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘ये सब तो आजादी के बाद से होता आया है और होता रहेगा. ये काम मुझे कौन से करने पड़ते हैं, ये तो करने वाले दूसरे हैं. सब अपनेआप होते रहते हैं.’’

‘‘तो फिर क्या तुम्हारे पास कोई नहीं आता अपनी समस्या ले कर?’’ मैं ने पूछा.

वह लापरवाही से बोला, ‘‘आते हैं, तो मैं नीचे भेज देता हूं या किसी को बुला कर डांट देता हूं. काम हो या न हो, सामने वाला खुश हो जाता है. या फिर फोन घुमा कर निर्देश दे देता हूं. सामने वाले को यह एहसास हो जाता है कि अब बड़े साहब ने ही फोन कर दिया है तो उस का काम होगा ही.’’

मैं ने कहा, ‘‘वाह, फिर यह साधने वाला काम क्या होता है, किस को साधते हो?’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...