“मम्मा, मैं ने अंकित को टिकट और विजिटिंग वीज़ा मेल कर दिया है, आप को लेने एयरपोर्ट आ जाऊंगी. बस, आप जल्दी से जल्दी मेरे पास आ जाओ.”

“पहले से कुछ बताया नहीं, कैसे जल्दी आ जाऊं. पहली बार तेरे घर आना है, कुछ तो तैयारियां करनी होगी”

“कैसी तैयारी, पापड़ बड़ी कोई खाता नहीं. इंडियन कपड़े मैं पहनती नहीं. बाकी सबकुछ अटलांटा में मिलता है, मां. बस, सुबह उठना और तैयार हो कर फ्लाइट में बैठ जाना.”

आशना का यह कहना था कि निधि ने तैयारियां शुरू कर दीं. बच्चों का क्या है, कुछ भी बोलेंगे. वो मां है, वो तो बेटी के लिए उस की पसंद की सारी चीज़ें ले कर जाएगी. बेटे अंकित से उस की पसंद की मिठाइयां मंगाईं तो एक साल पहले की सारी तैयारियां याद हो आईं. कैसे घर को दुलहन सा सजाया था, घर के हर दरवाज़े पर आम के पल्लव का तोरण लगाया था. बहू के आने और बेटी को विदा करने के सफ़र में हर बार पति की कमी कितनी खली थी पर खुद को संभालती हुई ऐसे तैयारी की कि उस की ज़िंदगी में जो खुशी का मौका आया है उसे ऐसे न जाने देगी, फिर अचानक सबकुछ बदल गया.

उस सुबह की याद आते ही उस का दिल कांप जाता है मगर आज उसी बेटी ने स्वयं उसे प्यार से बुलाया तो जरूर कोई न कोई अच्छी बात होगी. यही सब सोचती उस के बचपन में पहुंच गई.

‘प्रैक्टिस मेक्स मैन परफैक्ट, क्यों मम्मा. प्रैक्टिस मेक्स ह्यूमन परफैक्ट क्यों नहीं?’

मात्र 10 वर्ष की थी जब स्कूल से आते ही बैग फेंक कर वह जटिल प्रश्नों के बौछार कर रही थी और उस के पास कोई उत्तर न था सिवा समझाने के. ‘इस में क्या है, मतलब से मतलब रखो न.’

‘मतलब यह है कि वुमन परफैक्ट नहीं होती. पूरा पक्षपात है पर जाने दो, तुम नहीं समझोगी.’

‘अरे बाबा, ये पुरानी बातें हैं. तुम्हारा जमाना अलग है, मेरी बन्नो. खुश रहा करो.’

‘व्हाट बन्नो, मैं कभी बन्ना-बन्नी नहीं बनूंगी, मम्मा. ये सब अपने बेटे को बना लो.’

अंकित जो उस से 5 साल बड़ा था, चुपचाप मां और बहन की बातें सुन रहा था और मां के अरमानों पर पानी फिरता देख कह उठा-

‘मैं बनूंगा बन्ना और बन्नी भी ला दूंगा, मम्मा.’

‘मेरा बच्चा,’ बोल कर निधि ने उसे सीने से लगा लिया. वाकई कभीकभी अंकित के लिए फिक्रमंद हो जाती थी. वैसे तो दोनों बच्चों को उस ने एक सा पालनपोषण दिया मगर बेटी अपने अधिकार के प्रति खूब सजग थी और बेटा उतना ही शांत था. यह शायद नए जमाने की नई लहर ही थी.

बच्चों के बचपन की की बातें चलचित्र सी आंखों में घूम गईं. सच ही कहते हैं- होनहार बीरबान के होत चिकने पात. बेटे ने जो कहा, कर दिखाया. सचमुच उस के पसंद की बहू ले आया जो नौकरी के साथ घर की देखभाल भी करती है. उस के आने के बाद कभी लगा ही नहीं कि वह किसी पराए घर की परवरिश है. शायद बेटे का उस के प्रति लगाव ही ऐसा था कि बहू ने भी सास पर अपना खूब लाड़ लुटाया.

पिता के किडनी फेलियर से हुई असमय मृत्यु ने ही अंकित को जिम्मेदार बना दिया था. उस ने परिवार का बिजनैस बखूबी संभाला. इस के विपरीत आशना हमेशा उस से रूठीरूठी ही रही. घर से दूर ही रही. इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए होस्टल गई, फिर उस का आनाजाना मेहमानों की तरह होता रहा. मां होने के नाते वह अपनी विद्रोही बेटी को खूब पहचानती थी. वह जितनी ही जहीन पढ़ाई में थी उतनी ही कड़वी जबान की भी स्वामिनी थी. मगर निधि के अंदर एक विश्वास था कि सारी कड़वाहट मिठास में बदल जाएगी जब उसे प्यार होगा. मगर प्यार के लिए भी तो उसे खुद को तैयार करना होगा.

दो वर्ष पहले सब से बड़ी खुशी भी उस ने ही दी कि उस की नौकरी एक इंटरनैशनल कंपनी में लग गई है. बेसिक तनख्वाह 60 लाख रुपए सालाना है. ऊपर से कुछ वैरिएबल अमाउंट और बोनस अलग. उस का अमेरिकन वीज़ा भी प्रोसैस हो गया है. इस बात पर पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई. आज भी महीने के 60 हजार रुपए में घर चलाने वाली गृहिणी की बेटी अगर साल के 60 लाख से ऊपर कमाने लगे तो वाकई अपनी पैदाइश पर गर्व होने लगता है.

उस की अप्रत्याशित सफलता से उस के प्रति निधि का रवैया ही बदल गया. उस के स्वतंत्र विचारधारा व नई सोच के प्रति आदर का भाव पैदा होने लगा. बेटी के दिमाग में कुछ तो बात होगी जो उसे इतने सम्मानित कंपनी में इतना अच्छा जौब मिला है और साथ ही, उस ने एक और खुशखबरी दी कि अपने ही सहपाठी अविनाश को जीवनसाथी बनाने का फैसला किया. इस बात पर निधि को लगा जैसे उस की लौटरी निकल गई. उसे तो यकीन ही नहीं था कि कभी उस की बेटी शादी के लिए किसी को पसंद भी करेगी. वह तो कब से इस दिन की प्रतीक्षा कर रही थी. खूब धूमधाम से शादी कराने की ठानी.

गोवा में डैस्टिनेशन वैडिंग की तैयारी की. होटल बुक कर एडवांस दे दिया गया. रिश्तेदारों ने अपने हवाई टिकट बुक कर लिए. कपड़े बन गए. शादी को बस एक हफ्ता रह गया था. आशना औफिस से छुट्टी ले कर घर आ गई. रातदिन दोनों लवबडर्स की तरह फ़ोन पर बातें करने लगे. शुभकार्य था, तो घर को भी लाइट और तोरण से सजा लिया. जब 90 प्रतिशत तैयारियां हो गईं और अगली सुबह हलदी व लेडीज संगीत के लिए गोवा की फ्लाइट पकड़नी थी तो आशना ने शादी से इनकार कर दिया.

निधि को कुछ समझ में नहीं आ रहा था. आखिर इस की वजह क्या हो सकती है. सबकुछ ठीक जा रहा था मगर अचानक कहीं उस से कोई भूल तो नहीं हुई है जो बेटी हत्थे से उखड़ गई है. न तो शादी के लिए तैयार है और न ही इस विषय में कुछ सुनना चाहती है. हिम्मत कर पूछ बैठी, ‘मेरे बच्चे, बताओ तो सही, आख़िर ऐसी क्या बात हो गई जो ये…’

‘कुछ भी नहीं. तुम सोचो, कुछ हुआ ही नहीं.’

‘सुन बच्चे, अगर हमारी ओर से लेनदेन में कोई कमी रह गई  तो बता, मैं उन लोगों से माफ़ी मांग लूंगी?’

‘तुम सचमुच बिना रीढ़ की हो, मां. अभी तक लगता था पर बगैर बात माफ़ी का क्या मतलब है. शादी वो लोग नहीं, मैं टाल रही’ हंसती हुई बोली तो कुछ तसल्ली हुई और फिर कहा, ‘एक और बार कारण पूछा तो घर छोड़ दूंगी मैं और लौट कर कभी नहीं आऊंगी.’

‘हां, पर मेहमान जो परसों से आने लगेंगे उन्हें क्या कह कर रोकूं?’

‘बोल दो, कोई मर गया.’

‘छीछी,  ऐसी मनहूस बातें नहीं कहते.’

‘क्या फर्क पड़ता है, मम्मा. कोई पहले मरे या बाद में. पापा सारी ज़िंदगी अपने घरवालों के पीछे मरते रहे. तुम ने बगैर उफ किए सारे त्याग किए. पहले कैरियर का त्याग, फिर मायके का, दादी के लिए पोते की ख्वाहिश में अबौर्शन करा कर शरीर का त्याग, फिर पापा के बिजनैस ट्रिप के बहाने खुद को शराब में डूबोने से किडनी खराब होने पर उन की असमय मृत्यु पर अपने श्रृंगार का त्याग. माफ़ करना, तुम्हें देख कर मुझे यही प्रेरणा मिली है कि मैं अपना जीवन त्याग के बिना बिताऊं. और यही मेरा अंतिम निर्णय है.’

निधि उस के इस रूप से परिचित तो थी ही, उसे तो यही आश्चर्य हो रहा था कि आखिर वह अविनाश से शादी के लिए मानी कैसे. जननी से ज्यादा अपनी जायी को और कौन समझता. इस विद्रोहिनी को अपने हाथों ही बड़ा किया था. यही सब सोचती कब सुबह हो गई, पता न लगा. मालूम होता था रात आंखों में कट गई. ‘फ्लाइट में सो लेगी’ यह सोच कर बचीखुची पैकिंग की और हार्ट्सफील्ड – जैक्सन अटलांटा इंटरनैशनल एयरपोर्ट पर उतरी, तो बेटी के हाथ प्रैम पर थे.

एक बार को लगा कि शायद गलती से किसी बच्चे के प्रैम को पकड़ लिया है मगर उस ने बोला, “तेरे बेटे से फास्ट हूं मैं. शादी उस ने पहले की पर तुझे नानी मैं ने पहले बनाया. कैसा लगा मेरा सरप्राइज़, मम्मा.” 

निधि निशब्द थी. कुछ सूझ न रहा था, तो आंखें बहने लगीं.

“आई हेट टियर्स,” कह कर हंस पड़ी.

उफ, सचमुच अपने बाप पर गई है. उसे जो करना है वही करेगी. दूसरे क्या सोचते हैं, इस से उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता. “तुम ने शादी कब की, कुछ बताया नहीं?”

“नहीं की, बाकी बातें घर पर करेंगे, मौम.”

उस ने कार में न केवल उस का सामान लोड किया बल्कि बच्चे को कार सीटर के बेल्ट में बिठा कर उस का हाथ पकड़ कर कार के अंदर बैठाया. एक नई मां का ऐसा ऐक्टिव रूप निधि के लिए दुनिया का आठवां अजूबा था.

घर पहुंच कर उस ने बगैर किसी मदद के खुद ही बच्चे को और उस के सामान को निकाला और निधि मूकदर्शक सी अपलक उसे निहारती रह गई. मन की बात मन में दबाए बेटी के घर में प्रवेश किया तो एकदम करीने से सुसज्जित घर में एक हाउसहैल्पर के अलावा और कोई न था.

आखिरकार हिम्मत कर पूछ बैठी, “इस का पिता कौन है, कहां है?”

“मां, इस का पिता वही शख्स है जिस से मैं ने प्यार किया था. मगर उसे अपने ऊपर अधिकार नहीं दिया वरना मुझ से कम तनख्वाह पाने वाला, मुझ से कम आईक्यू वाला अपने कैरियर में मुझ से आगे निकल अपने दोस्तों में शान से मेरे बच्चे का बाप कहलाने का गौरव पाता.”

“बेटू, सिर्फ़ इतनी सी बात के लिए तुम ने शादी नहीं की?”

“चिल्ल ममा, इतनी सी बात नहीं है. शरीर के कुछ हिस्सों के सिवा मुझ में उस में क्या अंतर है, बोलो? सिर्फ़ इतने के लिए मैं उसे छाती पर नहीं बिठा सकती थी.”

“फिर उस का ही बच्चा क्यों?” इस बार निधि ने तीर निशाने पर लगाया.

“मैं ने उस से प्यार किया था.”

एक इस बात से निधि को तसल्ली हुई कि बेटी चाहे जितने भी विरोधी नारे लगा ले मगर उस ने मन को मलिन नहीं किया था. उस का कहना किसी हद तक सही था. कई पीढ़ियों से महिलाएं अकेली, अपने दम पर घरगृहस्थी खींचती हुई अपनी मेहनत पर दूसरे का यशगान करती नहीं थकती हैं. अपने खूनपसीने से सजाए आशियाने पर पति के नाम की नेमप्लेट खुशीखुशी बरदाश्त करती हैं तो स्वेच्छा से अपनी ही नेमप्लेट के साथ जीना कोई गलत तो नहीं. उस की बेटी के घर, बैंक बैलेंस और यहां तक कि बच्चे पर सिर्फ़ और सिर्फ़ उस की नेमप्लेट थी.

लेखिका – आर्या झा

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