उस शाम मैं जब औफिस से घर पहुंची तो उड़ती नजर आंगन में डालते हुए अपने कमरे में दाखिल हो गयी. आंगन में तुषार और उसके कुछ दोस्त जमा थे. कुछ खुसुर-पुसुर चालू थी. मैंने आते ही तुषार को आवाज लगायी. वह भागा-भागा कमरे के दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया. मैंने अलमारी खोलते हुए उसे झिड़की लगायी, ‘सारा दिन खेलते-खेलते दिल नहीं भरा, घर में भी धम्मा चौकड़ी मची हुई है? ये तेरे सारे दोस्त यहां क्यों जमा हैं?’

तुषार एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ मेरे पास आया. मैंने सोचा कि अभी कहेगा कि मां मैगी बना दो, मेरे और मेरे दोस्तों के लिए. भूख लगी है.

मगर पास आकर उसने धीरे से कहा, ‘मां, आपको कुछ दिखाना है...’

मैंने पर्स अलमारी में डालते हुए पलट कर पूछा, ‘क्या...?’

तुषार बोला, ‘आप आंगन में तो चलो, वहां कुछ दिखाना है....’ वह मेरी साड़ी का पल्ला पकड़ कर खींचते हुए मुझे आंगन में ले आया, जहां उसके चार दोस्त अपने बीच कुछ लिए बैठे थे. मैंने पास जाकर देखा तो मिट्ठू के पिंजरे में एक छोटी सी मैना बंद थी.

मैंने तुषार से पूछा, ‘यह कहां से आयी?’

उसने खुशी-खुशी बताया, ‘यहां कमरे की खिड़की पर बैठी थी, हमने कपड़ा डाल कर पकड़ लिया और मिट्ठू के पिंजरे में रख दिया.’

मिट्ठू को मरे तो साल भर हो गया. उसका पिंजरा मैंने गोदाम में रख दिया था. इन बच्चों ने उसे निकाल कर झाड़पोंछ कर उसमें मैना को कैद कर रखा था.

मैंने थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए पूछा, ‘कब पकड़ा इसे?’

एक बच्चा बोला, ‘आंटी, चार घंटे हो गये, पर यह कुछ खाती ही नहीं है. अब तो अंधेरा भी हो रहा है, इसको दिखायी भी नहीं देगा, फिर यह कैसे खाएगी?’

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