सुमन के मम्मीपापा को इस में आपत्ति नहीं थी मगर उन्होंने इस के पूर्व सुधाकर से मिलने की इच्छा जताई.
सुधाकर मथुरा जा कर सुमन के मम्मीपापा से मिल आया. सुमन के पापा तब तक नहीं जान पाए थे कि सुधाकर उन्हीं के मित्र विमल शर्मा का पुत्र है, जिन को लोग उन के शत्रु के रूप में जानते हैं. उन्हें अपनी बेटी के लिए एक सुयोग्य वर की तलाश थी, जो घरबैठे पूर्ण हो रही थी.
यह राज तो तब खुला जब सुधाकर के मम्मीपापा अपने बेटे के विवाह के लिए औपचारिक रस्म निभाने मथुरा आए.
थोड़ी देर के लिए तो वे दोनों अवाक् रह गए कि वे क्या देखसुन रहे हैं. और उन्हें क्या और कैसे बात करनी है.
‘मुझे माफ कर दो, विमल,’ आखिरकार सुमन के पापा रुंधे कंठ से बोले, ‘15 साल पहले की गई गलती का एहसास मुझे समय रहते हो गया था. मगर समय को वापस लौटाना कहां संभव है. अगर वह हादसा हो जाता जिसे करने की मैं ने कोशिश की थी, तो दोनों ही परिवार बरबाद हो जाते.’
‘अब उस बात को जाने भी दो.’
‘मैं सुमन का विवाह सुधाकर से करूं, यही मेरा प्रायश्चित्त होगा.’
‘अरे, यह प्रायश्चित्त की नहीं, प्रसन्नता की बात है. मैं अपने बेटे के लिए तुम्हारी बेटी का हाथ मांगने आया हूं,’ विमल शर्मा उन्हें गले लगाते हुए बोले, ‘उस दुस्वप्न को तो मैं कब का भूल चुका हूं.’
विवाह की रस्म पूर्ण होने के कुछ दिन बाद वह सुधाकर के घर चली आई थी.
‘‘अरे सुमन, कहां खो गईं,’’ सुधाकर बोला तो उस की तंद्रा टूटी, ‘‘जरा बाहर का नजारा तो देखो, कितना खूबसूरत है.’’
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन