अशोक सुबह उठ कर व्यायाम कर रहा था. सुबह उठने की उस की बचपन की आदत है. आज भी उसी क्रम मे लगा हुआ था. तब तक रीमा भी उठ कर आ गई और बोली, “चाय का इंतजार तो नहीं कर रहे हो?” “हां, वह तो स्वाभाविक है” अशोक बोल पड़ा.“तो जाओ दूध ले आओ, रात ही बोला था कि दूध खत्म हो गया है.”

“ओह, मैं तो भूल ही गया था. अभी लाया,” कहता हुआ अशोक अपना मास्क लगा कर चल दिया.

जब से कोरोना की महामारी आई है सोसायटी में बिना मास्क लगाये घूमने और निकलने की इजाजत नहीं है.

जैसे ही अशोक लिफ्ट से बाहर निकल कर सोसायटी में अंदर बने मार्केट की ओर चला तभी गेट नंबर चार के पास बैठे गार्ड के सामने खड़े सोसायटी के पदाधिकारियों को खरीखोटी सुनाते हुए देख अशोक के कदम रुक गए.

किस बात पर वे लोग गार्ड को बातें सुना रहे थे यह जानने की थोड़ी उत्सुकता उसे जरुर हो रही थी, पर दूध लाने की जल्दी में ज्यादा समय न बर्बाद करते हुए अशोक दूध लेने चल दिया. दूध ले कर लौटते समय देखा तो वह गार्ड उस गेट से नदारद था.

अशोक ने चारो तरफ निगाह दौड़ाई तो उसे वह गार्ड जाता हुआ दिखाई दिया. लगभग दौड़ते हुए अशोक उस के पास पहुंच गया और पूछ ही लिया, “क्या कह रहे थे वे लोग आप से? अरे, भई बोलो तो सही ...” अशोक ने दो बार कहा तो कुछ अस्फुट से शब्द गार्ड के मुंह से निकले जो अशोक को समझ नहीं आए, तो अशोक ने फिर पूछा, "भाई क्या हुआ?"

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