दिन में कईकई बार इंटरनैट कनैक्शन जब डाउन होने लगता, तो मुझे परदेस गए प्रीतम से भी ज्यादा इंटरनैट का बिछोह सताने लगता और सताता भी क्यों न, इंटरनैट के बिना पूरे घर की हर चीज ही बेकार है, जिंदगी भी बेकार हो जाती है.

मैं ने गैस पर दूध का भगोना रखा. डबलरोटी की 2 स्लाइस टोस्टर में डाली ही थीं कि व्हाट्सऐप चैट की घंटी बजने लगी और एकएक कर के हम 4 सहेलियों की बातें शुरू हो गईं. एक ने अपने रोमांस के नए किस्से को शुरू ही किया था.

मनपसंद गौसिप सुन कर मैं फौरन गैस बंद कर के सोफे पर जा बैठी और चारू, रमा, तिस्ता की बातों में डूबने लगी. अभी बात आधी भी खत्म नहीं हुई थी कि मेरा इंटरनैट कनैक्शन चला गया. स्क्रीन फ्रीज हो गई.

हाय रे, इंटरनैट चला गया. नैट के जाते ही हमारा उल्लास भी तिरोहित हो गया. काफी दिनों बाद तो ग्रुप चैट हो रही थी और उसे में पूरा सुनने की तमन्ना दिल में ही रह गई. अब वे चारों अपनीअपनी बातें कह रही होंगी और मैं घर में ही फिर रही थी.

पिछले महीने ओटीटी पर जो फिल्में आई थीं, पूरा परिवार अपनेअपने मोबाइलों पर घंटों देखता रहा था, सो, नैट का बैलेंस खत्म हो गया होगा. जिस समय हमारा मूड होता, तभी इंटरनैट बंद हो जाता. इंटरनैट वाले न दिन देखते, न रात, न घंटे, न मिनट. पैसा खत्म, बात आधीपूरीकटी.

पिछली गरमी की एकएक घड़ी याद दिलाती है. इंटरनैट चले जाने से व्हाट्सऐप भी बंद हो गया और मेल आने भी बंद हो गए. बाहर निकलना मुश्किल होता.

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