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 लेखक- नीलमणि शर्मा

‘‘भाभी...जल्दी आओ,प्लीज,’’ मेघा की आवाज सुन कर मैं दौड़ी चली आई.

‘‘क्या बात है, मेघा?’’ मैं ने प्रश्न- सूचक दृष्टि उस की तरफ डाली तो मेघा ने अपनी दोनों हथेलियों के बीच मेरा सिर पकड़ कर सड़क की ओर घुमा दिया, ‘‘मेरी तरफ नहीं भाभी, पार्क की तरफ देखो...वहां सामने बैंच पर लैला बैठी हैं.’’

‘‘अच्छा, तो उन आंटी का नाम लैला है...तुम जानती हो उन्हें?’’

‘‘क्या भाभी आप...’’ मेघा चिढ़ते हुए पैर पटकने लगी, ‘‘मैं नहीं जानती उन्हें, पर वह रोज यहां इसी समय इसी बैंच पर आ कर बैठती हैं और अपने मजनू का इंतजार करती हैं. भाभी, मजनूं बस, आता ही होगा...वह देखो...वह आ गया...अब देखो न इन दोनों के चेहरों की रंगत...पैर कब्र में लटके हैं और आशिकी परवान चढ़ रही है...’’

मैं ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा, ‘‘इस उम्र के लोगों का ऐसा मजाक उड़ाना अच्छी बात नहीं, मेघा.’’

‘‘भाभी, इस उम्र के लोगों को भी तो ऐसा काम नहीं करना चाहिए...पता नहीं कहां से आते हैं और यहां छिपछिप कर मिलते हैं. शर्म आनी चाहिए इन लोगों को.’’

‘‘क्यों मेघा, शर्म क्यों आनी चाहिए? क्या हमतुम दूसरों से बातें नहीं करते हैं?’’

‘‘हमारे बीच वह चक्कर थोड़े ही होता है.’’

‘‘तुम्हें क्या पता कि इन के बीच क्या चक्कर है? क्या ये पार्क में बैठ कर अश्लील हरकतें करते हैं या आपस में लड़ाईझगड़ा करते हैं, मेरे हिसाब से तो यही 2 बातें हैं कि कोई तीसरा व्यक्तिउन का मजाक बनाए. फिर जब तुम उन्हें जानती ही नहीं हो तो उन के रिश्ते को कोई नाम क्यों देती हो.’’

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