फिर उस ने अपनी सारी दवाएं उठा कर फेंक दीं और जो कुछ उस के खाने के लिए आया था उसे भी हाथ नहीं लगाया. मैं उसे असहाय सी खड़ी देख रही थी. मैं ने डरतेडरते आशीष को फोन मिलाया.
आशीष बोले, ‘‘क्या बात है?’’
‘‘संकर्षण ने दवाएं फेंक दी हैं और खाना भी नहीं खा रहा है,’’ मैं ने कहा.
आशीष झल्ला कर बोले, ‘‘तो मैं क्या करूं?’’ और फोन काट दिया.
मैं ने संकर्षण को समझाने की कोशिश की ‘‘प्लीज, ऐसा मत करो. ऐसे तो तुम्हारी तबीयत और खराब हो जाएगी. तुम ठीक हो जाओ. मैं तुम्हारे सारे प्रश्नों के उत्तर दूंगी, अभी तुम मेरी बात समझ नहीं पाओगे.’’
‘‘क्या नहीं समझ पाऊंगा? इतना बच्चा नहीं हूं मैं. आप क्या बताएंगी? यही न कि मेरी कोई गलती नहीं थी. मैं रेप का शिकार हुई थी. कम से कम यही बता दीजिए ताकि आप के प्रति मेरी नफरत कुछ कम हो सके, वरना इस नफरत से मेरे अंदर ज्वालीमुखी धधक रहा है.’’
मैं कैसे कह दूं यह, जबकि मुझे पता है कि मेरे साथ कोई रेप नहीं हुआ था और न ही हम दोनों अपने पार्टनर के प्रति बेवफा थे. यह बिलकुल सत्य है कि उस एक घटना के अलावा हम लोगों के मन में कभी एकदूसरे के प्रति और भाव नहीं आए. हम एकदूसरे का उतना ही आदर करते रहे जितना इस घटना के पहले करते थे, पर इस बात को संकर्षण समझ पाएगा भला? संकर्षण ही क्या आशीष भी इस बात को समझ पाएंगे क्या?
मेरा ऐसा सोचना गलत भी न था. तभी तो 2 दिन बाद आशीष ने मुझ से पूछा, ‘‘संकर्षण के पिता गगन ही हैं न?’’
मैं ने कहा, ‘‘पहले मेरी बात तो सुनिए.’’
‘‘मुझे और कुछ नहीं सुनना है, तुम मुझे केवल यह बताओ के संकर्षण के पिता गगन ही है न?’’
मैं ने कहा, ‘‘हां.’’
यह सुनते ही आशीष जैसे पागल हो गए. मुझ पर चिल्लाए, ‘‘नीच हो तुम लोग. जिन पर मैं ने जिंदगी भर विश्वास किया, उन्हीं लोगों ने मुझे धोखा दिया. मुझे इस की आदतें, शक्ल गगन से मिलती लगती थी, पर फिर भी मैं कभी संदेह न कर सका तुम दोनों पर…मेरे इस विश्वास का यह सिला दिया… तुम ने क्यों किया ऐसा?’’ और फिर गुस्से से आशीष ने मेरी गरदन पकड़ते हुए आगे कहा, ‘‘जी तो कर रहा है, तुम्हें मार का जेल चला जाऊं ताकि फिर कोई पत्नी पति को धोखा देने से पहले 10 बार सोचे, पर तुम इतनी नीच हो कि तुम्हें मारने का भी मन नहीं कर रहा है. उस से तुम्हारी तुरंत मुक्ति हो जाएगी जबकि मैं यह नहीं चाहता. मेरी इच्छा है तुम तिलतिल कर मरो,’’ और फिर आशीष ने मेरी गरदन छोड़ दी.
उधर संकर्षण अपने पिता का नाम जानने की जिद लगाए बैठा था. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं उसे गगन का नाम कैसे बता दूं…मुझे पता था कि वह उन की बहुत इज्जत करता है. उन के साथ बिताए सारे सुखद क्षणों की स्मृतियां संजोए हुए है.
अगर वे भी उस से छिन गईं तो कैसे जीएगा, कुछ समझ में नहीं आ रहा था. इधर कुआं तो उधर खाई. न बताने पर तो वह केवल अवसादग्रस्त है, बताने पर कहीं अपनी जान ही न दे दे. दवा न खाने और अवसादग्रस्त होने से संकर्षण की हालत 2 दिनों में और ज्यादा बिगड़ गई. उसे मानोवैज्ञानिक चिकित्सा की आवश्यकता पड़ गई. इधर गगन का कुछ भी पता न था. वे क्या कर रहे हैं, कहां हैं, किसी को कोई जानकारी न थी.
एक दिन मैं ने डरतेडरते आशीष से कहा, ‘‘गगन का पता लगाइए वरना संकर्षण का इलाज नहीं हो पाएगा.’’
‘‘मैं कैसे पता लगाऊं? तुम अनपढ़ हो क्या?’’ और फिर पैर पटकते हुए चले गए.
कुछ समझ में नहीं आ रहा था. पलपल अपनी आंखों के सामने अपने बच्चे को मरता देख रही थी. जिंदगी में अनजाने में हुई एक गलती का इतना बड़ा दुष्परिणाम होगा, सोचा न था.
फिर मैं ने सारे संबंधियों, दोस्तों को ई-मेल किया, ‘‘संकर्षण बहुत बीमार है. उस की बीमारी डीएनए टैस्ट से पता चलेगी. अत: गगन जहां कहीं भी हों तुरंत संपर्क करें.’’
अंजन और अमिता भी संकर्षण को देखने आ गए थे. वीकैंड था वरना रोज फोन से ही हालचाल पूछ लेते थे. आज की जिंदगी में इनसान इतना व्यस्त रहता है कि अपनों के लिए ही समय नहीं निकाल पाता है. आते ही थोड़ा फ्रैश होने के बाद अमिता और अंजन दोनों ने एकाएक पूछा, ‘‘क्या बात है मम्मीपापा, आप दोनों बहुत परेशान नजर आ रहे हैं?’’
आशीष यह प्रश्न सुन कर वहां से उठ कर चले गए.
‘‘मम्मी इन्हें क्या हुआ?’’ अंजन ने पूछा.
‘‘कुछ नहीं बेटा, संकर्षण की ही बीमारी को ले कर हम परेशान हैं.’’
‘‘यह बीमारी का तनाव आप लोगों के चेहरे पर नहीं है. कुछ और बात है…हम लोग इतने बच्चे भी नहीं हैं कि कुछ समझ न सकें. सच बात बताइए शायद हम लोग कोई हल निकाल सकें.’’
मुझे बच्चों की बातों से कुछ आशा की किरण नजर आई, लेकिन फिर मन में संदेह हो गया कि जब आशीष कुछ सुनने को तैयार नहीं हैं, तो बच्चे क्या खाक मेरी बात समझेंगे? फिर बताना तो पड़ेगा ही, सोच मैं ने बच्चों को सारी बात बता दी.
आज की पीढ़ी शायद हम लोगों से ज्यादा समझदार है. सारी स्थिति का विश्लेषण करती है और फिर कोई निर्णय लेती है.
वे दोनों कुछ देर के लिए एकदम गंभीर हो गए, फिर अमिता बोली, ‘‘तभी हम लोग समझ नहीं पाते थे कि संकर्षण हम लोगों से इतना भिन्न क्यों है? हम लोग इस का कारण उस की परवरिश मानते थे पर सच तो कुछ और ही था.’’