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मदन के जवाब से खुश हो कर शास्त्री ने अगले ग्राहक की ओर रुख करते हुए पूछा, ‘‘बताओ शिवपाल, कब्ज से राहत तो मिली?’’

‘‘महाराज, अब क्या बताऊं. नई मुसीबत आन पड़ी है. पथरी के दर्द से व्याकुल हुआ जा रहा हूं. इस से मुक्ति दिला दीजिए.’’

शास्त्री के चेहरे पर मुक्तिदाता के भाव उभरे.

‘‘वैसे संदेह था ही मुझे, ठीक है, अब 3 चम्मच तुलसी का रस हर रोज लेता रह. हां, तुम बताओ बाबूराम, मठिया से फुरसत पा कर आज तुम यहां आ ही गए आखिर. बताओ, क्या हुआ?’’

‘‘महाराज, बवासीर से तिलमिला रहा हूं. और जानता हूं आप जैसे ज्ञानी ही इस का सही तोड़ बता सकते हैं.’’

‘‘अरे, तुम बवासीर की बात करते हो. हमारे ग्रंथों में हर पीड़ा का समाधान छिपा हुआ है. तो बाबूराम, तुम ऐसा करो, आम के सूखे पत्ते मसल कर चिलम में भर कर पीते रहो. बवासीर धुएं में न उड़ जाए तो कहना.’’

शास्त्री के पीछे बैठा वीरेन मजे ले कर यह सुन रहा था. अब पथप्रदर्शक का स्वांग भरता हुआ शास्त्री वहां उपस्थित सभी से कहने लगा, ‘‘अरे भई, आप समाज के कर्ताधर्ता हो. शरीर की तंदुरुस्ती का खयाल आप सभी को रखना ही होगा. एक रामबाण उपाय जो मैं नित्य बताता रहता हूं, उस का सार आप लोग भी सुन लो. इस अमृत की खोज हमारे योगियों ने बहुत पहले ही कर ली थी. जिसे ‘शिवांबु कल्प विधि’ कहा गया है.’’

फिर एकाएक आवाज को रहस्यमयी बना कर शास्त्री नीचे स्वर में बोला, ‘‘भोर में जाग कर पूर्व दिशा की ओर मुख कर के शिवांबु का पान कीजिए यानी स्वमूत्र पीजिए. तत्पश्चात सूर्यनारायण को नमस्कार. देखिए, आप के ज्ञातअज्ञात सब रोग दूर भाग जाएंगे.’’

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