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छुगनू जानता था, अगर वीरेन को मालूम हुआ कि वह किसी धार्मिक उत्सव में शिरकत करने गया था तो वह उसे ढेर सारे उपदेश देने लगेगा. इसलिए उस ने बात बदलते हुए कहा, ‘‘अभी महाराज के शौचालय और गोशाला की सफाई कर लूं तो आज का काम भी पूरा हो जाएगा. फिर घर जा कर आराम ही करना है मुझे.’’

‘‘अरे, पर यह तो निजी काम है. इसे आप क्यों करोगे?’’

‘‘नहींनहीं, भैया, ऐसा नहीं कहते. अब जो इनकार किया तो अगले जनम में सूअर बन कर गंदगी में मुंह मारना पड़ेगा और बामनसेवा करने से हमें भगवानजी का आशीष भी तो मिलेगा.’’

‘‘अगर पीढि़यों से भगवान का आशीष ही मिल रहा है, तो कहिए हमारी इस हालत में सुधार क्यों नहीं होता? छुगनू भैया, कब समझ पाओगे आप लोग सचाई. आखिर कब तक इस बेसिरपैर के डर को ढोते रहोगे. खैर, बताइए, आप की लड़की रोजाना स्कूल तो जा रही है न?’’

‘‘हांहां, भैया. अब वह एक दिन भी नहीं चूकती. आप ने उसे जाने क्या मंतर पढ़ाया है. कहती है, ‘मैं भी वीरेन भैया जैसी ही बनूंगी.’ ’’

‘‘जरूर बनना चाहिए उसे, बल्कि देखना, वह मुझ से भी बड़ी अफसर बनेगी एक दिन. अच्छा तो मैं चलता हूं,’’ कहता हुआ वीरेन वहां से जाने लगा तो छुगनू ने उसे संकोच से रोका.

‘‘वीरेन भैया, रुकिए. महाराज कह रहे थे, उन के शौचालय से निकासी नहीं हो रही. शायद लाइन भर गई है.’’

‘‘हां, औफिस में उन की अर्जी पहुंच चुकी है. मैं साइट पर ही जा रहा हूं, देख लूंगा. आप कोई फिक्र न करो.’’

मंदिर की सामने वाली साइट पर मजदूर डे्रनेज लाइन बिछाने का काम कर रहे थे. इंजीनियर वीरेन की देखरेख में यह काम चल रहा था. वीरेन अपने मातहत को सामने रखे लैपटौप के जरिए बारीकियों से निर्देश देता हुआ काम समझा रहा था. तभी आसपास के अन्य मंदिरों में पूजा कर के लौट रहा गोवर्धन शास्त्री वहां आ कर कुछ दूरी पर रुक गया. आनेजाने वाले लोग उसे कठपुतलियों की तरह प्रणाम कर रहे थे. अपने श्वेत वस्त्र संभालता हुआ शास्त्री वीरेन का ध्यान आकर्षित करने के लिए गला खंखार कर बोला, ‘‘इंजीनियर साहब, मेरे शौचालय में नरकासुर उछाल मारमार कर सांस लेना दूभर कर रहा है. जान सकता हूं, हमें इस नरकपीड़ा से मुक्ति कब मिलेगी?’’

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