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हमारी नजरें उत्सुकतावश द्वार पर ही लगी हुई थीं कि उधर से एक हाथ से लड़की की उंगली थामे और दूसरे से लड़के को गोद में उठाए कमला का पदार्पण हुआ. लड़के को देखते ही सब लोग मुसकराने लगे. भाभी ने फुसफुसा कर मां से कहा था, ‘यह तो गोपी का हमशक्ल है.’

अब की बार तो कमला में गजब का परिवर्तन दृष्टिगोचर हो रहा था. आंखें तो पहले ही बड़ीबड़ी थीं, मां ने जो अपनी पुरानी लिपस्टिक और साड़ी दे दी थी, उन के इस्तेमाल के बाद तो उस का रूप ही निखर आया था. कोई नहीं कह सकता था कि यह किसी छोटी जाति के घर की बहू है. काले रंग में भी इतना आकर्षण होता है, यह इंदु ने उस दिन जाना था. अब समझ आया कि क्या था उस कालीकलूटी में जो गोपी जैसा बांका नौजवान उस पर मरता था.

एक दिन मां कुछ हलकेफुलके मूड में थीं. किसी काम से गोपी उन के पास आया तो बोलीं, ‘क्यों रे गोपी, तेरी उम्र निकली जा रही है, तू शादी कब करेगा?’

‘बीबीजी, शादी तो हमारी हो गई.’

‘शादी हो गई? और हमें पता भी नहीं चला?’ मां ने हैरानी से पूछा.

गोपी ने नजर उठा कर इंदु की तरफ देखा. वह समझ गई कि गोपी उस के सामने बात करने में झिझक रहा है, सो वह वहां से उठ तो गई पर बात सुनने का लोभ संवरण न कर पाई, इसलिए बराबर वाली कोठरी में छिप कर खड़ी हो गई.

‘हां, अब बोल,’ मां ने उस की ओर देखा.

‘तुम्हें मालूम नहीं चला तो मैं क्या करूं. तुम्हारे पास तो वह रोज आती है,’ गोपी सिर झुका कर बोला.

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