लेखिका-डा. के रानी
संध्या के लिए इतनी बड़ी बात अपने तक सीमित रखना बहुत मुश्किल हो रहा था. घर आ कर उस ने अपनी मम्मी सीमा को यह बात बताई. सीमा बोली, ‘‘यह क्या कह रही हो संध्या? लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे?’’मम्मी, मु झे दुनिया वालों की परवा नहीं. आखिर दुनिया ने मेरी कितनी परवा की है? मु झे तो केवल सुमित की मम्मी की चिंता है. वे इस रिश्ते को कैसे स्वीकार कर पाएंगी?‘‘संध्या, तुम्हें अब सम झदारी से काम लेना चाहिए.’’‘‘तभी मम्मी, मैं ने उस से कुछ नहीं कहा. मैं चाहती हूं कि पहले वह अपनी मम्मी को मना ले.’’ ‘‘तुम ठीक कह रही हो. ऐसे मामले में बहुत सोचसम झ कर कदम आगे बढ़ाने चाहिए.’’
संध्या की मम्मी सीमा ने उसे नसीहत दी.कुछ दिनों बाद सुमित ने फिर संध्या से वही प्रश्न दोहराया-‘‘तुम मु झ से कब शादी करोगी?’’ ‘प्लीज सुमित, आप यह बात मु झ से दूसरी बार पूछ रहे हो. यह कोई छोटी बात नहीं है.’’ ‘‘इतनी बड़ी भी तो नहीं है जितना तुम सोच रही हो. मैं इस पर जल्दी निर्णय लेना चाहता हूं.’’ ‘‘शादी के निर्णय जल्दबाजी में नहीं, अपनों के साथ सोचसम झ कर लिए जाते हैं. आप की मम्मी इस के लिए राजी हो जाती हैं तो मु झे कोई एतराज नहीं होगा.’’उस की बात सुन कर सुमित चुप हो गया. उस ने भी सोच लिया था अब वह इस बारे में मम्मी से खुल कर बात कर के ही रहेगा. सुमित ने अपनी और संध्या की दोस्ती के बारे में मम्मी को बहुत पहले बता दिया था.‘‘मम्मी, मु झे संध्या बहुत पसंद है.’’‘‘कौन संध्या?’’‘‘मेरे साथ कालेज में पढ़ाती है.’’‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है. तुम्हें कोई लड़की पसंद तो आई.’’‘‘मम्मी. वह कुंआरी लड़की नहीं है. एक विधवा महिला है. मु झ से उम्र में बड़ी है.’’‘‘यह क्या कह रहे हो तुम?’’‘‘मैं सच कह रहा हूं.’’‘‘और कोई सचाई रह गई हो तो वह भी बता दो.’’‘‘हां, उस का एक 8 साल का बेटा भी है.’
’ सुमित की बात सुन कर आशा का सिर घूम गया. उसे सम झ नहीं आ रहा था उस के बेटे को क्या हो गया जो अपने से उम्र में बड़ी और एक बच्चे की मां से शादी करने के लिए इतना उतावला हो रहा है. उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे संध्या ने सुमित पर जादू कर दिया हो जो उस के प्यार में इस कदर पागल हो रहा है. उसे दुनिया की ऊंचनीच कुछ नहीं दिखाई दे रही थी.‘‘बेटा, इतनी बड़ी दुनिया में तुम्हें वही विधवा पसंद आई.’’‘‘मम्मी, वह बहुत अच्छी है.’’‘‘तुम्हारे मुंह से यह सब तारीफें मु झे अच्छी नहीं लगतीं,’’ आशा बोलीं.वे इस रिश्ते के लिए बिलकुल राजी न थीं. उन्हें सुमित का संध्या से मेलजोल जरा सा पसंद नहीं था. इसी बात को ले कर कई बार मम्मी और बेटे में तकरार हो जाती थी.
दोनों अपनी बात पर अड़े हुए थे. संध्या का नाम सुनते ही आशा फोन काट देतीं.शाम को सुमित ने मम्मी को फोन मिलाया.‘‘हैलो मम्मी, क्या कर रही हो?’’‘‘कुछ नहीं. अब करने को रह ही क्या गया है बेटा?’’ आशा बु झी हुई आवाज में बोलीं.‘‘आप के मुंह से ऐसे निराशाजनक शब्द अच्छे नहीं लगते. आप ने जीवन में इतना संघर्ष किया है, आप हमेशा मेरी आदर्श रही हैं.’’‘‘तो तुम ही बताओ मैं क्या कहूं?’’‘‘आप मेरी बात क्यों नहीं सम झती हैं? शादी मु झे करनी है. मैं अपना भलाबुरा खुद सोच सकता हूं.’’‘‘तुम्हें भी तो मेरी बात सम झ में नहीं आती. मैं तो इतना जानती हूं कि संध्या तुम्हारे लायक नहीं है.’’‘‘आप उस से मिली ही कहां हो जो आप ने उस के बारे में ऐसी राय बना ली? एक बार मिल तो लीजिए. वह बहू के रूप में आप को कभी शिकायत का अवसर नहीं देगी.’’‘
‘जिस के कारण शादी से पहले मांबेटे में इतनी तकरार हो रही हो उस से मैं और क्या अपेक्षा कर सकती हूं. तुम्हें कुछ नहीं दिख रहा लेकिन मु झे सबकुछ दिखाई दे रहा है कि आगे चल कर इस रिश्ते का अंजाम क्या होगा?’’‘‘प्लीज मम्मी, यह बात मु झ पर छोड़ दें. आप को अपने बेटे पर विश्वास होना चाहिए. मैं हमेशा से आप का बेटा था और रहूंगा. जिंदगी में पहली बार मैं ने अपनी पसंद आप के सामने व्यक्त की है.’’‘‘वह मेरी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं है. तुम इस बात को छोड़ क्यों नहीं देते बेटे.’’‘‘नहीं मम्मी, मैं संध्या को ही अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं. मु झे उस के साथ ही जिंदगी बितानी है. मैं जानता हूं मु झे इस से अच्छी और कोई नहीं मिल सकती.’’
आशा में अब और बात सुनने का सब्र नहीं था. उस ने फोन कट कर दिया. सुमित प्यार और ममता की 2 नावों पर सवार हो कर परेशान हो गया था. वह इस द्वंद्व से जल्दी छुटकारा पाना चाहता था. उस ने कुछ सोच कर कागजपेन उठाया और मम्मी के नाम चिट्ठी लिखने लगा.‘मम्मी, ‘आप मु झे नहीं सम झना चाहतीं, तो कोई बात नहीं पर यह पत्र जरूर पढ़ लीजिएगा. पता नहीं क्यों संध्या में मु झे आप की जवानी की छवि दिखाई देती है.‘आप ने जिस तरीके से जिंदगी बिताई है वह मु झे याद है. उस समय मैं बहुत छोटा था और यह बात नहीं सम झ सकता था लेकिन अब वे सब बातें मेरी सम झ में आ रही हैं. परिवार की बंदिशों के कारण आप की जिंदगी घर और मु झ तक सिमट कर रह गई थी.
आप का एकमात्र सहारा मैं ही तो था जिस के कारण आप को नौकरी करनी पड़ रही थी और लोगों के ताने सुनने पड़ते थे. यह बात मु झे बहुत बाद में सम झ में आई.‘जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ तो मु झे लगता मेरी मम्मी इतनी सुंदर हैं फिर भी वे इतनी साधारण बन कर क्यों रहती हैं? पता नहीं, उस समय आप ने अपनी भावनाओं को कैसे काबू में किया होगा और कैसे अपनी जवानी बिताई होगी? समाज का डर और मेरे कारण आप ने अपनेआप को बहुत संकुचित कर लिया था. संध्या बहुत अच्छी है. वह मु झे पसंद है. मैं उसे एक और आशा नहीं बनने देना चाहता.
मैं उस के जीवन में फिर से खुशी लाना चाहता हूं. जो कसर आप के जीवन में रह गई थी मैं उसे दूर करना चाहता हूं. हो सके आप मेरी बात पर जरूर ध्यान दें.‘आप का बेटा, सुमित.’पत्र लिखने के बाद सुमित ने उसे पढ़ा और फिर पोस्ट कर दिया. आशा ने वह पत्र पढ़ा तो उन के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया. उन्होंने तो कभी ऐसा सोचा तक न था जो कुछ सुमित के दिमाग में चल रहा था. उसे याद आ रहा था कि सुमित की दादी जरा सा किसी से बात करने पर उन्हें कितना जलील करती थीं. किसी तरह सुमित से लिपट कर वे अपना दर्द कम करने की कोशिश करती थीं.आज पत्र पढ़ कर रोरो कर उन की आंखें सूज गई थीं. उन्हें अच्छा लगा कि उन का बेटा आज भी उन के बारे में इतना सबकुछ सोचता है. बहुत सोच कर उन्होंने सुमित को फोन मिलाया.