Hindi Kahani : औफिस से घर लौटी प्रिया ने 50 हजार रुपए अपनी मां के हाथ में पकड़ाते कहा, ‘‘इस में 30 हजार रुपए सुमित की कंप्यूटर टेबल और नई जींस के लिए हैं.’’
‘‘कार की किस्त कैसे देगी इस बार?’’ मां ने चिंतित लहजे में पूछा. यह कार उन लोगों ने कोविड से पहले ली थी, पर कोविड में पिता की मौत के बाद वह भारी हो गई है.
‘‘उस का इंतजाम मैं ने कर लिया है. अब तुम जल्दी से मु झे कुछ हलकाफुलका खिला कर एक कप चाय पिला दो. फिर मु झे कहीं निकलना है.’’
‘‘कहां के लिए? इन दिनों कहीं भी जाना ठीक है क्या?’’
‘‘सुबह बताया तो था. एक कौन्फ्रैंस है, 2 दिन वहां रहना भी है. रविवार की शाम तक लौट आऊंगी.’’
‘‘मल्होत्रा साहब भी जा रहे हैं न?’’
‘‘पीए अपने बौस के साथ ही जाती है मां,’’ प्रिया अकड़ कर उठी और अपनी खुशी दिखाते हुए बाथरूम में घुस गई.
प्रिया की मां की आंखों में पैसे को ले कर चमक थी. जहां पैसेपैसे को मुहताज हो, वहां कहीं से भी कैसे भी पैसे आएं, अच्छा लगता है.
वह घंटेभरे बाद घर से निकली तो एक छोटी सी अटैची उस के हाथ में थी.
उसे विदा करते समय उस की मां का मूड खिला हुआ था. उन की खामोश खुशी साफ दर्शा रही थी कि वे उसे पैसे कमाने की मालकिन मान चुकी थीं.
प्रिया उन के मनोभावों को भली प्रकार सम झ रही थी. अपनी 25 साल की बेटी का 45 साल के आदमी से गहरी दोस्ती का संबंध वैसे भी किसी भी मां के मन की सुखशांति नष्ट कर सकता था, एक मां को समाज के लोगों का डर लगता था. बेटी बदनाम हो गई तो न मां सुरक्षित रह पाएगी, न बेटी.
मल्होत्रा साहब के पीए का पद प्रिया ने तकरीबन 2 साल पहले संभाला था. उन के आकर्षक व्यक्तित्व ने पहली मुलाकात में ही प्रिया के मन को जीत लिया था.
अपनी सहयोगी ऊषा से शुरू में मिली चेतावनी याद कर के प्रिया कार चलातेचलाते मुसकरा उठी.
‘यह मल्होत्रा किसी शैतान जादूगर से कम नहीं है, प्रिया,’ ऊषा ने कैंटीन में उस का हाथ थाम कर बड़े अपनेपन से उसे सम झाया था, ‘अपने चक्कर में फंसा कर यह पहले भी कई लड़कियों को इस्तेमाल कर मौज ले चुका है. तु झे इस के जाल में नहीं फंसना है. सम झी? उसे लगता है कि हम जैसी जाति की लड़कियों को जब चाहे पैसे दे कर खरीदा जा सकता है.’
ऐसी चेतावानियां उसे औफिस के लगभग हर व्यक्ति ने दी थीं जो उन की जाति या उस जैसी जाति का था. उन की बातों के प्रभाव में आ कर प्रिया मल्होत्रा साहब के साथ कई दिनों तक खिंचा सा व्यवहार करती रही थी, पर आखिरकार उसे अपना वह बनावटी रूप छोड़ना पड़ा था.
मल्होत्रा साहब बहुत सम झदार, हर छोटेबड़े को पूरा सम्मान देने वाले एक अच्छे इंसान हैं. मु झे उन से कोई खतरा महसूस नहीं होता है. मु झे उन के खिलाफ भड़काना बंद करो आप, ऊषा मैडम, प्रिया के मुंह से कुछ ही हफ्तों बाद इन वाक्यों को सुन कर ऊषा ने नाराज हो कर उस के साथ बोलचाल लगभग बंद कर दी थी.
नौकरी शुरू करने के 2 महीने बाद ऊषा ही ठीक साबित हुई और प्रिया का मल्होत्रा साहब के साथ अफेयर शुरू हो गया था.
उस दिन प्रिया का जन्मदिन था. मल्होत्रा साहब ने उसे एक बेहद खूबसूरत ड्रैस उपहार में दी. दोनों ने महंगे होटल में डिनर किया. वहां से बाहर आ कर दोनों कार में बैठे और मल्होत्रा साहब ने उस की तरफ अचानक झुक कर जब उस के होंठों पर प्यारभरा चुंबन अंकित किया तो प्रिया आंखें मूंद कर उस स्पर्श सुख से मदहोश सी हो गई थी.
उस दिन के ठीक 10 दिनों बाद प्रिया ने रविवार का पूरा दिन मल्होत्रा साहब के साथ उन की कोठी पर गुजारा था. उसे भरपूर यौन सुख दे कर मल्होत्रा साहब ने स्वयं को एक बेहद कुशल प्रेमी सिद्ध कर दिया था.
बाद में मल्होत्रा साहब ने उस के बालों को प्यार से हिलाते हुए इस संबंध को ले कर अपनी स्थिति साफ शब्दों में बयान कर दी थी, ‘प्रिया, मेरी बेटी 17 साल की है और होस्टल में रह कर मसूरी में पढ़ रही है. अपनी पत्नी से मैं कई वर्षों से अलग रह रहा हूं. मैं ने तलाक लेने का मुकदमा चला रखा है, लेकिन वह आसानी से मु झे नहीं मिलेगा. शायद 3-4 साल और लगेंगे तलाक मिलने में, पर मैं जो कहना चाह रहा हूं, उसे अच्छी तरह से तुम आज सम झ लो, प्लीज.’
‘मैं पूरे ध्यान से आप की बात सुन रही हूं,’ प्रिया ने उन की आंखों में प्यार से झांकते हुए जवाब दिया था.
‘तलाक मिल जाने के बाद भी मैं तुम से कभी शादी नहीं कर सकूंगा. उस तरह के सहारे की तुम मु झ से कभी उम्मीद मत रखना.’
‘फिर किस तरह के सहारे की उम्मीद रखूं?’ प्रिया को अचानक अजीब सी उदासी ने घेर लिया था.
‘अपना नाम देने के अलावा मैं अपना सबकुछ तुम्हारे साथ बांटने को तैयार हूं, डार्लिंग.’
‘सबकुछ?’
‘हां.’
‘क्या यह कोठी मेरे नाम कर दोगे?’
‘तुम्हें चाहिए?’
बड़ी लंबी सी खामोशी के बाद प्रिया ने गंभीर लहजे में जवाब दिया था, ‘मैं ने अपने मन को टटोला तो पाया कि किसी लालच के कारण मैं आप से नहीं जुड़ी हूं. मैं जब आप के साथ होती हूं तो बेहद खुश, खुद को बेहद सहज और सुरक्षित महसूस करती हूं. हम जीवनसाथी बनें, ऐसा विचार कभी मेरे मन में नहीं उठा है और न ही अब उठ रहा है. वैसे भी, हमारी जातियां अलगअलग हैं और उन में शादियां आज भी नहीं होतीं.’
‘गुड,’ मल्होत्रा साहब ने फिर से उसे अपनी बांहों के घेरे में कैद कर लिया था.
‘लेकिन, क्या आप मु झे दिल से प्यार करते हैं या सिर्फ मेरा शरीर ही…’
मल्होत्रा साहब ने उस के होंठों को चूम कर उसे चुप किया और कहा, ‘तुम बेहद खूबसूरत, बहुत प्यारी, बहुत भोली और सम झदार लड़की हो, प्रिया. मैं बहुत खुश हूं, जो तुम मेरी जिंदगी में आई हो, ढेर सारी खुशियों की बहार ले कर.
‘तुम्हारे बारे में सोच कर मेरा मन नाच उठता है. तुम्हें देख कर दिल खिल उठता है. तुम पास रहो या दूर, मैं तुम्हारे इस सुंदर साथ के लिए सदा आभारी रहूंगा.’
‘और मैं भी आप की.’
‘तुम किसलिए?’
‘मौजमस्ती और सुखसुविधा भरी ऐसी जिंदगी का स्वाद चखाने के लिए, जो आप से जुड़े बिना मु झे कभी नसीब न होती. ऐशोआराम भरी ऐसी जिंदगी, जिस की मैं कल्पना करती तो दुनिया से विदा हो जाती.’
‘तुम्हें खुश रखना मु झे बहुत अच्छा लगता है.’
‘मेरी भी यही सोच है, माई स्वीटहार्ट,’ प्रिया भावुक हो कर मल्होत्रा साहब के सीने से लग गई थी.
उन दोनों ने अपने इस रिश्ते को दुनिया की नजरों से बचा कर रखने का हर संभव प्रयास किया था. प्रिया का ज्यादातर समय मल्होत्रा साहब की कोठी में बीतता. वे बाहर ऐसे शानदार व महंगे होटलों में ही जाते, जहां प्रिया के किसी परिचित या रिश्तेदार की मौजूदगी की संभावना न के बराबर होती.
‘मेरा दिल करता है कि मैं हर जगह तुम्हारे साथ खुल कर घूमूंफिरूं, हंसूंबोलूं, पर तुम्हारी बदनामी का डर मु झे ऐसा नहीं करने देता,’ मल्होत्रा साहब ने एक दिन उदास लहजे में अपनी इच्छा व्यक्त की थी.
‘बनावटी जिंदगी जीते हुए सचाई को छिपाते जाना आज हर व्यक्ति के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है, सर. देखिए, लकड़ी को बनावटी रूप दे कर ये सोफा और पलंग बने हैं. किस रिश्ते में हम बनावटी व्यवहार नहीं करते? क्या शादी की रस्म बनावटी नहीं है? प्रकृति में कहीं भी क्या शादी नाम की प्रथा, मानव समाज को छोड़ कर नजर आती है?’ प्रिया एकदम से उत्तेजित हो उठी थी.
‘मेरे दिल में तुम्हारे लिए जो प्रेम है, वह बनावटी नहीं है, प्रिया.’
‘मैं जानती हूं, सर और इसीलिए कहती हूं कि हमें इस प्रेम की मिठास को बनाए रखने के लिए ही इसे दुनिया की नजरों से छिपाना होगा. लोगों को खामखां बकवास करने का मौका क्यों दें? ऐसा सोचना डर का नहीं, बल्कि सम झदारी का प्रतीक है, सर,’ प्रिया की इस सोच को सम झ कर मल्होत्रा साहब प्रेमसंबंध को ले कर कहीं ज्यादा सहज हो गए थे.
उस शाम को प्रिया अटैची ले कर मल्होत्रा साहब की कोठी पहुंची तो उस ने उन्हें परेशानी व उल झन का शिकार बने पाया था.
प्रिया ने कई बार उन की परेशानी का कारण पूछा, पर वे जवाब देना टाल गए. तब प्रिया ने गुमसुम बन कर उन के मन की बात जानने के लिए उन पर दबाव बनाया.
प्रिया की यह तरकीब डेढ़ घंटे में ही सफल हो गई और मल्होत्रा साहब ने उस की बगल में बैठ कर अपने मन की परेशानी को बताना शुरू कर दिया.
‘‘आज शाम को घटी 2 बातों ने मेरे मन की शांति हर ली है,’’ मल्होत्रा साहब ने गहरी सांस खींच कर बोलना शुरू किया, ‘‘पहले तो मेरे एक वरिष्ठ सहयोगी ने तुम्हें ले कर बड़ी घटिया सी बात कही और फिर…’’
‘‘क्या कहा था उन्होंने?’’ प्रिया ने अपने माथे पर बल डाल कर उन्हें टोकते हुए पूछा.
‘‘उस बात को छोड़ो.’’
‘‘नहीं, प्लीज, मैं जानना चाहती हूं.’’
बड़ी िझ झक के साथ मल्होत्रा साहब ने बताया, ‘‘वह घटिया इंसान जानना चाह रहा था… पूछ रहा था कि तुम एक रात के लिए कितना चार्ज करती हो. उस ने यह भी कहा कि तुम्हारी जाति की लड़कियां तो शादी से पहले ही जीजाओं, चाचाओं, पड़ोसियों के साथ हंसखेल चुकी होती हैं.’’
‘‘मैं सम झ गई. फिर आप ने क्या जवाब दिया?’’ प्रिया ने उन का हाथ पकड़ कर शांत भाव से पूछा.
‘‘मेरा दिल तो किया था कि घूंसे मार कर उस के दांत तोड़ डालूं, पर बेकार का तमाशा खड़ा हो जाता. मैं ने कड़े शब्दों में फिर कभी ऐसी बकवास करने की हिम्मत न करने की चेतावनी दे दी है.’’
‘‘गुड. मैं उस के व्यवहार से चकित नहीं हूं, सर. हमारा समाज भौतिक स्तर पर खूब तरक्की कर रहा है, पर अधिकतर लोगों की सोच नहीं बदली है. पतिपत्नी के रिश्ते को छोड़ उन्हें स्त्रीपुरुष के हर अन्य संबंध में अनैतिकता और अश्लीलता ही नजर आती है.’’
‘‘इस तरह के लोग तुम्हारी बदनामी का कारण बन जाएंगे, प्रिया. मेरे कारण तुम जिंदगी में दुख और परेशानियां उठाओ, यह मु झे बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा. तुम्हारी मां ठीक ही कह रही
थीं कि…’’
‘‘मेरी मां से आप की कब बात हुई, सर?’’ प्रिया ने चौंक कर प्रश्न किया.
‘‘तुम्हारे घर से निकलने के बाद उन्होंने मु झे फोन किया था.’’
‘‘आई एम सौरी, सर. मैं ने उन्हें आप को कभी भी फोन करने से मना कर रखा है, फिर भी क्या कहा उन्होंने…?’’ प्रिया अपने गुस्से को मुश्किल से नियंत्रण में रख पा रही थी.
‘‘तुम्हारे जीजा का दोस्त रवि 10 दिनों बाद मुंबई से आ रहा है. अब रेलें चलने लगी हैं न. वे चाहती हैं कि इस बार तुम दोनों के बीच शादी की बात आगे बढ़े. कम से कम रोका हो जाए, ऐसी उन की इच्छा है.’’
‘‘और क्या कहा उन्होंने?’’
‘‘मैं तुम से दूर हो जाऊं, ऐसी प्रार्थना करते हुए बद्दुआएं भी दे रही थीं. प्रिया, क्या मैं ने तुम्हें अपनी दौलत, अपनी अमीरी, अपने रुतबे और ओहदे के बल पर अपने साथ जोड़ रखा है? क्या मैं तुम्हारे साथ खिलवाड़ कर रहा हूं?’’ ये सवाल पूछते हुए मल्होत्रा साहब की आवाज में पीड़ा के भाव पैदा हुए.
‘‘ऐसे आरोप मां ने लगाए आप पर?’’
‘‘हां. उन के मन की चिंता मु झे गलत भी नहीं लगी, प्रिया. हमारा रिश्ता रवि के साथ तुम्हारी शादी होने की राह में बिलकुल रुकावट बन सकता है.’’
‘‘मेरी और रवि की शादी होगी, ऐसा फैसला अभी किसी ने नहीं किया है, सर. फिलहाल उस की बात जीजा ने चलाई है. मां ने आप से अपने मन का डर बताया है.’’
‘‘लेकिन, कल को तुम दोनों शादी करने का फैसला कर सकते हो, प्रिया. और तब हमारे बीच का संबंध तुम दोनों के बीच मनमुटाव व अलगाव पैदा करने का कारण बन सकता है. मैं यह कभी नहीं चाहूंगा कि वह मु झ से कभी आ कर झगड़ा करे.’’
‘‘सर, आप पहले मेरी बात सुनिए,’’ प्रिया ने टोक कर अपने मन की बात कहनी शुरू कर दी, ‘‘जिस दिन रवि और मैं शादी करने का फैसला करेंगे, उस दिन से या उस से पहले ही हमारे बीच सैक्स संबंध समाप्त हो जाएंगे, क्योंकि तब न आप का और न मेरा दिल और बदन ऐसा करने की इजाजत हमें देंगे.’’
‘‘यह सच है कि पापा की कोविड में मौत के बाद हमें माली संकट से उबारने में आप ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. अब फ्लैट की किस्तें मु झे नहीं देनी पड़तीं. कार की किस्त अटके या किसी अन्य खर्च के अचानक सिर पर आ पड़ने की स्थिति में आप मेरी हैल्प करते हो. हम साथ घूमते हैं तो भी आप का बहुत खर्चा होता है. हमारे लोगों में यह सुख भी थोड़ों को ही मिला है.
‘‘लेकिन, मेरे देखे यह सब खर्चा तो आप खुशीखुशी करते आए हैं. मु झे कहने की जरूरत नहीं पड़ती और आप पहले से ही मेरी जरूरत सम झ जाते हैं. आप की दौलत नहीं, बल्कि प्रेम ने मु झे आप के साथ जोड़ा हुआ है. मेरी सोच किसी वेश्या की सोच नहीं है.’’
‘‘बेकार की ऐसी बातें सोच कर परेशान मत हो, प्रिया,’’ उसे यों सम झाते हुए मल्होत्रा साहब खुद परेशान नजर आ रहे थे.
‘‘सर, मेरी कोशिश तो आज हम दोनों को बेकार के अपराधबोध की पकड़ से मुक्त करने की है,’’ खुद को शांत करते हुए प्रिया ने आगे बोलना जारी रखा, ‘‘आप अपनी दौलत के मालिक हैं और मैं अपने शरीर की. इन का हम क्यों अपनी मनमरजी से उपयोग नहीं कर सकते?’’
‘‘प्रिया, समाज कुछ रिश्तों को गलत मानता है.’’
‘‘सर, किसी पंडितपुजारी ने फेरे नहीं कराए हैं तो क्या हमारे बीच सैक्स संबंध नाजायज और अनैतिक बन जाएगा? क्या वारिस पैदा करने के लिए ही स्त्रीपुरुष के बीच सैक्स संबंध बने? सारे पांडव भी अपने बाप की औलादें नहीं थीं.’’
मल्होत्रा साहब की सम झ में नहीं आया कि वे प्रिया को क्या जवाब दें तो उस ने अपना तर्क आगे बढ़ाया, ‘‘आज की तारीख में आप की पत्नी नहीं, बल्कि मैं आप की सुखदुख की साथिन हूं. आप अगर मेरा ध्यान रखते हैं और झुक कर अपनी कमाई खर्च करते हैं तो इस में क्या बुराई है, क्या गलत है?
‘‘रही बात हमारे बीच उम्र के बड़े अंतर की तो प्रेम संबंध की मजबूती आपसी सम झ, तालमेल व चाहत के भावों पर निर्भर करती है, न कि प्रेमियों की उम्र पर. हर उम्र के इंसान का दिल प्रेम देना और पाना चाहता है और इस के लिए उचित प्रेम पात्र का मिलना सब से महत्त्वपूर्ण है. पंडित, पुजारी और समाज में नैतिकता को ले कर शोर मचाने वाले ठेकेदार 2 इंसानों के बीच मजबूत प्रेम संबंध पैदा कराने की गारंटी कभी नहीं दे सकते. हमारे गांव का पंडित ऊंचीनीची जाति की हर लड़की पर हाथ मारने की कोशिश करता रहता है. कभी बात बनती है, कभी नहीं.’’
‘‘हम दोनों एकदूसरे के साथ बहुत खुश और सुखी हैं. मैं जानती हूं कि वक्त के साथ हमारा यह रिश्ता भी रूप बदलेगा और मैं उस के लिए तैयार हूं.
‘‘अब सवाल यह है कि क्या लोगों की बातों पर ध्यान दे कर आप मु झे व अपनेआप को व्यर्थ के तनाव, उल झन और अपराधबोध का शिकार बना कर अभी इस रिश्ते को समाप्त करना चाहोगे?’’
मल्होत्रा साहब ने बेहिचक गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘प्रिया, तुम अगर आज मेरी जिंदगी से चली जाओ तो मेरी जिंदगी बेहद नीरस हो जाएगी. बु झेबु झे अंदाज में अकेले जीवन बड़ा बो िझल साबित होगा.’’
‘‘तब व्यर्थ की बातें सोचना और कहनासुनना बंद कर दीजिए,’’ प्रिया उन की छाती से लग गई, ‘‘एकदूसरे का सुखदुख बांटते हुए हम खुश हैं और यही बात सिद्ध करती है कि हम जीने के व्यावहारिक तल पर सही और सफल हैं.’’
‘‘तुम उम्र में छोटी होते हुए भी मुझ से ज्यादा समझदार हो, कहीं ज्यादा प्रैक्टिकल हो,’’ मल्होत्रा साहब पहली बार सहज ढंग से मुसकरा उठे थे.
‘‘थैंक यू सर,’’ प्रिया ने उन के गाल पर प्यारभरा चुंबन अंकित कर दिया.
‘‘तुम्हें भूख नहीं लग रही है क्या?’’
‘‘बहुत जोर से लग रही है.’’
‘‘बोलो, कहां चलें?’’
‘‘वहां,’’ प्रिया ने मल्होत्रा साहब का हाथ थामा और शरारती अंदाज में हंसतीमुसकराती बैडरूम की तरफ भाग चली. उस के साथ भागते हुए मल्होत्रा साहब अपनी सारी परेशानी व अपराधबोध को भुला कर, स्वयं को जोश व ताजगी से भरे नौजवान सा फिट महसूस कर रहे थे.