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उसी समय एक घायल लड़की को अस्पताल लाया गया. वह कालेज से आ रही थी कि उस की साइकिल का बैलेंस बिगड़ गया और वह बुरी तरह जख्मी हो गई. डा. जावेद, अमन और अन्य डाक्टर उस के इलाज में जुट गए. उसे काफी चोटें आई थीं. एक टांग में फ्रैक्चर भी हो गया था. लड़की के मातापिता बहुत घबराए हुए थे. उन्हें दिलासा दे कर बाहर वेटिंग हौल में बैठने को कहा. लड़की के इलाज का जिम्मा डा. अमन को सौंपा गया.

लड़की बेहोश थी. उस के होश में आने का वहीं बैठ कर इंतजार करने लगा. लड़की बहुत सुंदर थी. तीखे नैननक्श, गोरा रंग, लंबे बाल. उस के होश में आने पर उस के मातापिता को बुलाया गया. बातोंबातों में पता चला कि लड़की का नाम नीरा है. बीए फाइनल का आखिरी पेपर दे कर लौट रही थी. सहेली के साथ बातें करती आ रही थी. तभी ऐक्सिडैंट हो गया.

इन का परिवार पहाड़ी था, परंतु ईसाई धर्म अपना लिया था. उन की बिरादरी में बहुत से परिवार थे, जिन्होंने पाखंडों और रूढि़वादिता से तंग आ कर अपनी इच्छा से इस धर्म को अपनाया था.

अगले दिन जब अमन वार्ड में मरीजों को देखने गया तो नीरा उसी वार्ड में थी. उस के मातापिता भी वहीं खड़े थे. डा. अमन ने जब नीरा का हालचाल पूछा तो उस ने अपनी लंबीलंबी पलकें झपका कर ठीक महसूस करने का इशारा कर दिया. उस के पिता उतावले से हो कर पूछने लगे, ‘‘डाक्टर हड्डी जुड़ने में कितना समय लगेगा? ठीक तो हो जाएगी न?’’

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