समय बीतता गया. नीरा की लापरवाहियां बढ़ती ही जा रही थीं. कभी कपड़े
धुले न होते, तो कभी घर अस्तव्यस्त होता. अमन ने दबे स्वर में आगाह भी किया. पर नीरा ने कोई ध्यान न दिया.
नीरा रात को भी कभी सिरदर्द, तो कभी थका होने का बहाना कर जल्दी सो जाती. अमन की नींदें गायब होने लगीं. उसे ऐसा लगने लगा कि वह ठगा गया है. अपनी शरण में आई लड़की का मान रखने के लिए उस ने अपने घरबार, मांबाप, बहनों सब को छोड़ दिया पर उसे क्या मिला? यही सोचतेसोचते पूरी रात करवटें लेते बीत जाती.
वैसे तो अमन के जीवन में चिंताओं और तनाव के बादल हमेशा के लिए छा गए थे, परंतु एक दिन तो ऐसा तूफान आया कि उस के जीवन का सारा सुखचैन उड़ा ले गया.
एक दिन डा. जावेद के साथ अमन एक होटल में गया. होटल में कौफी का और्डर दे कर वे बैठे ही थे कि अचानक हौल के कोने में बैठे एक जोड़े पर अमन की निगाह रुक गई. एक गोरा सुंदर सा युवक अपनी महिला साथी के हाथों को पकड़े बैठा था. कभी बातें करता तो कभी ठहाके लगाता.
अचानक उस युवक ने उस युवती के हाथों को चूम लिया. युवती जोर से खिलखिला कर हंस पड़ी. उस के हंसते ही सारे राज खुल गए. दरअसल युवती और कोई नहीं नीरा ही थी. ध्यान से देखा तो उस की साड़ी भी पहचान में आ गई. यही साड़ी तो आज कालेज जाते समय नीरा पहन कर गई थी.
अमन का चेहरा सफेद पड़ गया. यह देख कर डा. जावेद ने भी पलट कर उधर देखा, वे भी नीरा को पहचान गए. होटल में कुछ अनहोनी न हो जाए, इसलिए वे गुस्से में कांपते अमन को लगभग खींचते हुए होटल से बाहर ले आए. लड़खड़ाती टांगों से किसी तरह अमन कार में बैठ गया. गुस्से से वह अभी तक कांप रहा था.