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राकेश और सुमन का गुरुवार की सुबह सहारनपुर लौटने का कार्यक्रम बना. राकेश के अंदर कोई गंभीर बीमारी नहीं पनप रही है, इस बात की खुशी सुमन भाभी को बहुत थी. इसी कारण उन्होंने सब को बाहर खाना खिलाने की दावत दे डाली. जिस होटल में जाने का कार्यक्रम बना वह बहुत महंगा होटल था.

‘‘भाभी, इतना खर्चा करने की क्या जरूरत है? आसपास के होटलों में भी अच्छा खाना कम खर्चे में उपलब्ध हो जाएगा,’’ अंजलि बोली. वह उस की खुशी में शामिल होने से बचना चाहती थी.

‘‘अंजलि, पैसा खर्च कर के अगर इंसान अपनों के साथ कुछ घडि़यां हंसतेमुसकराते गुजारने में सफल हो जाता है तो यह महंगा सौदा नहीं कहलाता. तुम्हारे परिवार से ज्यादा हमारे करीब और कौन हो सकता है? आज मेरी खुशियों में अगर तुम भी दिल से शामिल हो जाओगी तो मैं तुम्हारी बहुत आभारी रहूंगी,’’ कहते हुए सुमन की आंखों में आंसू छलक आए.

‘‘मैं ने एक बात कही थी, साथ चलने से इनकार नहीं किया है,’’ कह कर अंजलि तैयार होने के लिए अपने शयनकक्ष में चली गई.

सुमन की आंखों में आंसू देख कर अंजलि उलझन का शिकार हो गई थी. उन आंसुओं में बनावटीपन या नाटक की झलक अंजलि को नजर नहीं आई थी.

सुमन भाभी के दिल में ऐसा क्या छिपा है जो उन की आंखों में आंसू ले आया? इस राज को हल कर पाने में अंजलि बहुत सोचविचार करने के बाद भी असफल रही.

सुमन की आंखों में आए आंसू देख कर अंजलि को अपने अंदर कुछ परिवर्तन आया जरूर महसूस हुआ. सुमन की जो खराब छवि आज तक उस के दिलोदिमाग में बसी थी उस में कुछ सुधार लाने में वे आंसू सफल रहे थे. उन आंसुओं के कारण वह अंजलि को ज्यादा मानवीय, कोमल व अपने दिल के करीब प्रतीत हुई थी.

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