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‘‘आज दफ्तर में राकेश भाईसाहब का फोन आया था,’’ जूतों के फीते खोलते हुए अरुण ने अंजलि को बताया.

‘‘वे कोई खास बात कह रहे थे?’’ कहते हुए अंजलि की आवाज में फौरन अजीब सा खिंचाव पैदा हुआ था.

‘‘वे और सुमन भाभी शनिवार को यहां दिल्ली आ रहे हैं.’’

‘‘किसी खास वजह से आ रहे हैं?’’ कहते हुए अंजलि के माथे पर बल पड़े.

‘‘हां, भाईसाहब अपना चैकअप यहां के किसी बड़े अस्पताल में कराना चाहते हैं. सप्ताहभर रुकेंगे. तुम शिखा और सोनू के कमरे में उन के रहने की व्यवस्था कर देना. शिखा ड्राइंगरूम में सो जाया करेगी और सोनू हमारे पास.’’

अंजलि अपने जेठजेठानी के इस तरह रहने आने पर एतराज प्रकट करना चाहती थी, लेकिन कर न पाई. कुछ महीने पहले ही उस के जेठ राकेश की हालत रक्तचाप बहुत बढ़ जाने के कारण बिगड़ गई थी. सहारनपुर के एक नर्सिंगहोम में उन्हें भरती रहना पड़ा था. डाक्टरों ने रक्तचाप नियंत्रण में न रहने की स्थिति में दिल पर बुरा प्रभाव पड़ने की आशंका जताई थी.

अब वे अपना इलाज कराने के लिए दिल्ली आना चाहते थे. अगर मामला स्वास्थ्य संबंधी न हो कर कुछ और रहा होता तो अंजलि यकीनन उन के अपने घर आने को ले कर एतराज प्रकट करती. फिलहाल उस ने अपने अधरों तक आए विरोध व शिकायत के शब्दों को भीतर ही दबा लिया.

वैसे भी उस के दिल में जेठ के नहीं, बल्कि जेठानी सुमन के प्रति नफरत व गुस्से के भाव व्याप्त थे. उस की शक्ल तक देखना अंजलि को गवारा न था. अतीत में घटी सिर्फ एक घटना के कारण उस ने जेठानी को सदा के लिए अपना पक्का दुश्मन मान लिया था.

‘‘बच्चों के इम्तिहान सिर पर आ गए हैं. उन्हें ज्यादा दिन नहीं रुकना चाहिए,’’ शिकायतीभाव से सिर्फ ऐसा कह कर अंजलि रसोई में चाय बनाने चली गई.

अरुण अपनी पत्नी के मनोभाव समझ रहा था. सुमन भाभी के प्रति अंजलि के मन में जो नफरत भरी हुई थी उस के लिए वह अपनी पत्नी को दोषी भी नहीं मानता था, लेकिन बड़े भाई को घर आ कर ठहरने के लिए इनकार करना भी उस के लिए संभव न था. ऐसी बेरुखी दिखाने के संस्कार उस के अंदर मौजूद नहीं थे.

वह तो बस, इतना चाह रहा था कि भैयाभाभी के आने पर कोई अनहोनी न घटे. सुमन भाभी के कारण अंजलि अतीत में बहुत अपमानित हुई थी. कहीं घर आई भाभी से बदला लेने की कोशिश तो अंजलि नहीं करेगी. इस सवाल ने अरुण को बहुत बेचैन व परेशान कर दिया.

हमारे जीवन में जो तनाव है उस की जड़ में मन की इच्छाएं होती हैं. मन की चाह और यथार्थ में अगर मेल नहीं बैठता तो शारीरिक व मानसिक परेशानियों को जन्म लेने से रोका नहीं जा सकता.

अंजलि सुमन को अपने घर में मेहमान के रूप में नहीं देखना चाहती थी. इस से वह जबरदस्त तनाव का शिकार हो गई. शनिवार के दिन उस के लिए बिस्तर से उठना भी मुश्किल हो गया.

दोपहर को 3 बजे जब राकेश व सुमन सहारनपुर से उन के घर पहुंचे तब उन के खाने के लिए रसोई में सिर्फ पीले चावल तैयार थे और वे भी अरुण ने बनाए थे. इस कारण अरुण जरूर मन ही मन शर्मिंदगी महसूस कर रहा था, लेकिन अंजलि के दिल में ऐसा कोई भाव पैदा नहीं हुआ. भैयाभाभी के लिए उस के दिल में प्रेम व आदरसम्मान का अभाव था और इस कारण बीमारी की हालत में उन के लिए खाना तैयार करने की उस ने कोई जरूरत ही नहीं समझी.

अरुण को सुमन का संतुलित व्यवहार देख कर अवश्य हैरानी हुई. अंजलि की बीमारी व घर में फैली अव्यवस्था देख कर उस की आंखों में पलभर को भी शिकायत या नाराजगी के भाव नहीं उभरे, बल्कि वह तो सफर की थकावट नजरअंदाज कर के बच्चों व बड़ों की भूख मिटाने को रसोई में घुस गई थी.

वह ढेर सारे फल लाई थी. आननफानन उन्होंने फलों की चाट तैयार कर के सब के सामने पेश कर दी. फिर अंजलि व अपने लिए चाय बनाई. बहुत प्रेम से आग्रह कर के उस ने चाय के साथ अपनी देवरानी को बिस्कुट भी खिला दिए.

अंजलि को सुमन का मीठा व अपनत्वभरा व्यवहार चुभ रहा था. ‘अपनी गरज से आई हैं तो कितनी मीठी बन रही हैं. इन की मुसकराहट के पीछे कितना जहर छिपा हुआ है, क्या मैं नहीं जानती,’ मन में ऐसे विचारों की उथलपुथल के चलते अंजलि का सिरदर्द और ज्यादा बढ़ गया.

शाम को सुमन सोनू को ले कर बाजार चली गई. कई तरह की सब्जियां व पनीर खरीद कर लाई. रात के भोजन में मटरपनीर की सब्जी के साथ गरमगरम परांठे बना कर उस ने सब को खिलाए. उस की जिद के सामने मजबूर हो कर अंजलि को भी एक परांठा खाना पड़ा था.

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