सोने से पहले अरुण ने अंजलि के सामने अपने मन की हैरानी प्रकट की, ‘‘सुमन भाभी तो बहुत बदल गई हैं. इतने सहज ढंग से उन्हें हंसतेबोलते व काम करते तो मैं ने कभी नहीं देखा. कैसे आ गया है उन में इतना बदलाव?’’ इस पर अंजलि ने बुरा सा मुंह बनाते हुए जवाब दिया, ‘‘उन का इस कदर हंसनाबोलना सिर्फ नाटक है. उन का असली जहरीला स्वभाव तो सहारनपुर में नजर आता है जब सीधेमुंह बात तक नहीं करतीं. अपने काम से आई हैं, सो पैसा भी खर्च कर रही हैं. अपने घर में तो सादा पानी का गिलास देने तक में इन्हें जोर पड़ता है. मुझे धोखा नहीं दे सकतीं आप की भाभी. मैं इन की रगरग से वाकिफ हूं.’’
अंजलि की आंखों में नफरत के भाव जागे. वह आगे बोली, ‘‘जानबूझ कर झूठ बोल कर उन्होंने मुझे सरेआम बेइज्जत किया था. उन्हें माफ करने का सवाल ही नहीं उठता, क्योंकि उन का दिया जख्म मेरे सीने में सदा हरा रहेगा.’’
कुछ देर बाद अरुण तो सो गया लेकिन अंजलि 8 वर्ष पुरानी घटना की यादों में उलझ कर जागती रही.
तब उस की शादी हुए करीब 3 महीने बीते थे. जिस घर में वह मंझले बेटे की दुलहन बन कर आई थी उस घर में उसे भरपूर खुशियां मिली थीं. सासससुर, देवर, ननद व जेठ उस की बहुत प्रशंसा करते. सिर्फ जेठानी ही थीं जिन के हावभाव देख कर उसे अकसर ऐसा महसूस होता जैसे वे अंजलि को पसंद नहीं करती थीं.
अंजलि ने उन के मनोभावों का विश्लेषण करने की कोशिश की तो इस नापसंदगी के कुछ कारण उस की समझ में आए.
अंजलि के मायके वाले सुमन के मायके वालों से बेहतर स्थिति में थे. अंजलि ज्यादा पढ़ीलिखी व खूबसूरत भी थी. अच्छी शिक्षा ने उस के व्यक्तित्व को ज्यादा प्रभावशाली व आकर्षक बना दिया था. उस के द्वारा लाया दहेज देख कर तो पूरे महल्ले वालों की आंखें फटी की फटी रह गई थीं. इन्हीं सब कारणों से सुमन भाभी उस से ईर्ष्या करती होंगी, अंजलि इस निष्कर्ष पर पहुंची थी.
अंजलि आपसी संबंधों में तनाव नहीं चाहती थी, इसलिए वह सुमन के साथ खास ध्यान रखते हुए बहुत अच्छी तरह पेश आती, लेकिन उस के अच्छे व्यवहार का सुमन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा.
सुमन की नाराजगी, शिकायतों व
व्यंग्यों का अंजलि को खूब
निशाना बनना पड़ा. इस का नतीजा यह भी निकला कि घरवालों, रिश्तेदारों व पड़ोसियों की नजरों में सुमन खलनायिका बन कर रह गई.
इन्हीं परिस्थितियों से प्रभावित हो सुमन ने अंजलि की साख गिराने के लिए उस के छोटे भाई विकास पर अपने गले की चेन चोरी करने का झूठा आरोप लगाया था.
21 वर्षीय विकास उस रविवार वाले दिन सिर्फ आधे घंटे के लिए अंजलि से मिलने आया था. अधिकतर समय वह बैठक में या अंजलि के कमरे में ही रहा था. सुमन के 4 वर्षीय बेटे मोनू के साथ खेलते हुए वह 2-4 मिनट के लिए ही सुमन के कमरे में गया था. इत्तफाकन उस वक्त कमरे में कोई अन्य व्यक्ति मौजूद नहीं था.
विकास के जाने के 5 मिनट बाद ही सुमन ने पूरे घर में हल्ला मचा दिया था, ‘मेरी सोने की चेन ड्रैसिंग टेबल की दराज में रखी थी, अब वह वहां नहीं है. अंजलि के भाई के अलावा किसी ने मेरे कमरे में कदम नहीं रखा है. चेन उसी ने चुराई हैं.’
इस तरह अपने भाई पर सरेआम आरोप लगाया जाता देख अंजलि खुद को बेहद अपमानित महसूस करती हुई रोने लगी थी.
‘मेरा भाई चोर नहीं हो सकता, भाभी. मेरे मातापिता के घर में उसे किसी भी चीज की कमी नहीं है, फिर वह चोरी क्यों करेगा?’ अंजलि ने आंखों में आंसू भर भाभी को समझाना चाहा था.
‘घर में वही बाहर का आदमी आया था. चोरी उस ने नहीं तो क्या मेरे सासससुर, देवरों, ननद या तुम ने की है?’ सुमन ने कहा था पर अंजलि से उन के सवालों का कोई जवाब देते नहीं बना था.
सुमन ने अंजलि के मातापिता को भी बुलवा लिया था. विकास भी मौजूद था. उस ने रोरो कर खुद को निर्दोष होने की दुहाई दी थी, लेकिन सुमन अप्रभावित बनी रही.
बात बढ़ती देख अंजलि के पिता ने चेन की कीमत के बराबर 5 हजार रुपए सुमन को देने स्वीकारे थे. वे संयुक्त परिवार में रह रही अपनी लाड़ली बेटी की परेशानियां बढ़ी देखना नहीं चाहते थे.
बाद में सुमन सब से कहती रही थीं, ‘बेटे ने चोरी न की होती और उस की खराब आदत से मातापिता परिचित न होते तो क्या वे इतनी आसानी से 5 हजार रुपए हमें देते? वैसे तो अंजलि खुद को बड़े घर की बेटी कहती है और भाई चोरी करता घूमता है.’
दिल्ली आने से पहले अंजलि सहारनपुर में लगभग 3 साल संयुक्त परिवार में रही थी. इस दौरान विकास ने घर की दहलीज कभी नहीं लांघी. मन में बसी गहरी नफरत के कारण अंजलि सुमन के साथ कभी सहज व्यवहार नहीं कर पाई.
सासससुर ने दोनों बहुओं के बीच जन्मा मनमुटाव देख कर उन का चौकाचूल्हा अलगअलग कर दिया था. अगर ऐसा न किया होता तो अंजलि जरूर ही अरुण को घर से अलग रहने को मजबूर कर देती.
उस घटना के दिन से आज तक अंजलि सुमन से नफरत करती आई थी. आज सुमन का बदला व्यवहार उसे बिलकुल प्रभावित न कर सका था. वह जितनी जल्दी उस की आंखों से दूर हो कर सहारनपुर लौट जाए, उतना अच्छा होगा, अतीत की ऐसी यादों में डूब कर अपना खून जलाती अंजलि देररात को ही सो सकी थी.
सुमन भाभी ने अगले दिन सब को
वे उपहार दिए जो सहारनपुर से
लाई थीं. शिखा को अपनी गुलाबी फ्रौक बहुत पसंद आई. सोनू रिमोट कंट्रोल से चलने वाला हवाईजहाज पा कर फूला नहीं समाया था. अंजलि के लिए साड़ी व चूडि़यां लाई थी. अरुण के लिए आसमानी रंग की कमीज थी. यह उस का पसंदीदा रंग था.
सभी उपहार महंगे व अच्छी किस्म के थे. बाकी सब तो उपहार पा कर खुश हुए, बस, अंजलि को ही उन का उपहार लाने वाला कृत्य नागवार गुजरा. वह सुमन का कैसा भी एहसान अपने ऊपर नहीं चाहती थी. वह तो किसी भी तरह का संबंध उन से रख कर खुश नहीं थी.
उस दिन तक अंजलि की तबीयत में अच्छाखासा सुधार हो गया. शिखा व सोनू की फरमाइश पर सब बाजार घूमने गए. वहां खानेपीने पर अच्छाखासा खर्चा राकेश ने किया. मन ही मन खिन्नता महसूस कर रही अंजलि ने ही कुछ भी खाने से इनकार कर दिया.
अंजलि की बेरुखी से अप्रभावित रहते हुए सुमन का मैत्रीपूर्ण व्यवहार अपनी जगह कायम रहा. अगले दिन राकेश को अपने चैकअप के लिए सर गंगाराम अस्पताल जाना था. सुमन ने घर से निकलने से पहले सब को नाश्ता बना कर खिला दिया. दोपहर के भोजन के लिए सब्जी तैयार कर दी और घर संभाल दिया था.
‘‘अंजलि, तुम अभी पूरी तरह ठीक नहीं हो, मेरे पीछे आराम करना. मैं अस्पताल से लौट कर बचा हुआ काम निबटा दूंगी,’’ सुमन ने कहा. उन की यह पेशकश सुन कर अंजलि ऊपर से तो सहज नजर आती रही, पर मन ही मन जलभुन गई थी.
अंजलि घर में अकेली रह गई थी. वह देर तक सुमन के व्यवहार में आए बदलाव के पीछे छिपे उन का कोई स्वार्थ ढूंढ़ने को सोचती रही. बहुत माथापच्ची करने के बाद भी जब वह किसी नतीजे पर न पहुंच सकी तो उस की बेचैनी और बढ़ गई क्योंकि वह सुमन के व्यक्तित्व का कोईर् भी गुण स्वीकार नहीं करना चाहती थी.
राकेश का चैकअप पूरा होने में 3 दिन लगे. उच्च रक्तचाप के अलावा डाक्टर उस के शरीर के किसी अन्य अंग में कोई रोग नहीं पकड़ पाए. उन्होंने दवाएं लिख दीं व महीनेभर बाद फिर चैकअप कराने आने को कहा.