Writer- Reeta Kumari
सूर्योदय से पहले उठ जाने की मेरी आदत नौकरी से अवकाश प्राप्त करने के बाद भी नहीं बदली थी. लालिमा के बीच धीरेधीरे निकलता सूर्य का सुर्ख गोला मुझे बहुत भाता था. पक्षियों का कलरव और हवा की सरसराहट में जैसे रात का रहस्यमय मौन घुलने लगता. तन को छूती ठंडी हवा मेरे मनप्राण को शांति और सुकून से भर देती.
हर दिन की तरह मैं लौन में बैठी इस अद्भुत अनुभूति में खोई आम के उस पौधे को निहार रही थी जिस का बिरवा आदित्य ने लगाया था. उसे भी मेरी तरह भिन्नभिन्न प्रकार के पौधे लगाने का शौक है. जब आदित्य को 1 वर्ष के लिए आफिस की तरफ से न्यूयार्क जाना पड़ा तो जाने से पहले वह मुझे हिदायतें देता रहा, ‘मां, 1 साल के लिए अब मेरे इन सारे पौधों की देखभाल की जिम्मेदारी आप पर है. खयाल रखिएगा, एक भी पौधा मुरझाने न पाए.’
सिर्फ 6 महीने अमेरिका में व्यतीत करने के बाद उस ने वहीं रहने का मन बना लिया. पौधे तो पौधे उसे तो अपनी मां तक की चिंता न हुई कि उस के बिना कैसे उस के दिन गुजरेंगे. अब यह सब सोचने की उसे फुरसत ही कहां थी. वह तो सात समंदर पार बैठा अपने भौतिक सुख तलाश रहा था. बस, दिल को इसी बात से सुकून मिलता कि बेटा जहां भी है सुखी है, खुश है, अपने सपनों को पूरा कर रहा है.
मेरे पति समीर भी अपने व्यापार के काम में व्यस्त हो कर अपना ज्यादातर समय शहर से बाहर ही बिताते जिस से मेरा अकेलापन दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा था.