सवालों की बौछार तले से निकलना उसे खूब आता था. तुरंत अपनी गलती मान ली, ‘‘सौरी, सौरी, माई डियर फ्रैंड, मैं ने तुझे जानबूझ कर नहीं बताया था. मुझे लगा कि वह मुझे ढूंढ़ता हुआ अगर कालोनी में आ गया, तो तू कहीं उसे मेरा पता न बता दे.
‘‘मुझे पता है, तू नहीं चाहती थी कि मैं उस से दूर भाग जाऊं.‘‘
“फिर दीपक ने तुझे कैसे खोज लिया? और दीपक को ले कर तेरे सारे डर...? उन का क्या हुआ?‘‘ आधी कहानी तो मुझे पहले ही पता लग चुकी थी.
“अब मैं तुझे कैसे बताऊं कि वह कितना गुस्सा हुआ था कि मैं ने उसे अपने आपरेशन और बाद में लकवे के बारे में कुछ नहीं बताया था. 3-4 महीने से कोई बात नहीं होने से वह बहुत परेशान हो गया था. इंडिया लौट कर उस ने पहला काम किया कि मेरे पुराने घर गया. वहां मेरे बारे में कोई उसे कुछ नहीं बता पाया. अगले दिन वह मेरे दफ्तर गया और वहां से मेरी नई पोस्टिंग मालूम कर के सीधा मुंबई मेरे घर पहुंच गया. रात के साढ़े 12 बजे, घंटी की आवाज सुन कर पहले तो मैं डर गई. झांक कर देखा तो दीपक खड़ा था.
''दरवाजा खोलने के अलावा मेरे पास कोई और चारा नहीं था. पहले तो उस ने इतना गुस्सा किया कि मैं उस से क्यों भाग रही थी? फिर मेरे आपरेशन के बारे में सारी बातें पूछीं? और जब मैं ने उस से कहा कि उसे किसी और से शादी कर लेनी चाहिए, तो वह गुस्से से आगबबूला हो गया.‘‘