“तुम्हारे पापा नहीं रहे.” उस के फोन उठाते ही मां ने कहा और फफकफफक कर रो पड़ीं.
“क्या कह रही हैं आप? कल ही तो मैं ने उन से बात की थी. अचानक ऐसा क्या हुआ?” अनामिका ने खुद को संभालते हुए कहा.
“बेटा, रात में जब वे सोए थे तब तो ठीक थे. सुबह अपने समय पर नहीं उठे तो मैं ने सोचा शायद रात में ठीक से नींद न आई होगी. 7 बजे जब मैं नीबूपानी ले कर उन्हें जगाने गई तो देखा...” वाक्य अधूरा छोड़ कर वे फिर फफक पड़ीं.
“मां, संभालो खुद को, मैं आती हूं,” कह कर उस ने फोन रख दिया.
उस ने राजीव अंकल, जो उन के पड़ोसी व पापा के अच्छे मित्र थे, को फोन मिलाया. उन्होंने तुरंत फोन उठा लिया. वह कुछ कहने ही वाली थी कि उन्होंने कहा, “बेटा, तुम चिंता मत करना, मैं और तुम्हारी आंटी तुम्हारी मां के पास ही हैं.”
“अंकल, मैं शाम तक ही पहुंच पाऊंगी, चाहती हूं कि पापा का अंतिम संस्कार मेरे सामने हो.”
“ठीक है बेटा, मैं दिनेश के पार्थिव शरीर को बर्फ की सिल्ली पर रखवा देता हूं.”
“थैंक यू अंकल.”
अनामिका फ्लाइट का टिकट बुक करा कर पैकिंग करने लगी. 3 घंटे बाद उस की फ्लाइट थी. बेंगलुरु का ट्रैफिक, 2 घंटे उसे एयरपोर्ट पहुंचने में लगने थे. वह तो गनीमत थी कि बेंगलुरु से लखनऊ के लिए डायरैक्ट फ्लाइट मिल गई थी वरना समय पर पहुंचना मुश्किल हो जाता. टैक्सी में बैठते ही उस ने छुट्टी के लिए मेल कर, अपने बचपन के मित्र पल्लव, जो सीतापुर में रहता था, को फोन कर के पिता के बारे में बताया. उस की बात सुनकर वह स्तब्ध रह गया. कुछ देर बाद उस ने कहा, “मैं तुरंत सीमा के साथ आंटीजी के पास जाता हूं. तुम परेशान न होना, धैर्य रखना.” उस से बात कर उस ने अपने टीममेट अभिजीत को फोन कर वस्तुस्थिति से अवगत कराया. उस ने उसे सांत्वना देते हुए कहा कि वह यहां की चिंता न करे, काम का क्या, वह तो चलता ही रहेगा.
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