बेटे की कामयाबी ने आज मां मीरा की सुख को तरसती आंखों में नमी ला दी. बहुत बड़ी कंपनी में अच्छा पैकेज. कितना असीम सुख होता है अपने बच्चे को कामयाबी की सीढ़ी चढ़ते देखना. मातापिता कितनी मिन्नतें करते हैं. व्रतउपवास करते हैं. रातों को पढ़ते बेटे के साथ अपने ही कमरे में उनींदी से जागते हैं. शायद बेटे को चाय या कौफ़ी की ज़रूरत पड़ जाए या भूख ही लग जाए. पिता भी गर्वित होते हैं. एक संतुष्टि उन के ह्रदय को तृप्त कर देती है पिता का दायित्व पूरा करने की, जीवन सफल होने की. मातापिता के जीवन की सफलता बेटे के जीवन के सुखदुख की आहट से बंध जाती है.
अभिन्न ने मां के भावपूर्ण चेहरे को देख कर कहा, “अरे मां, अब क्यों आंख में आंसूं? अब तो हमारी सारी परेशानियां ही ख़त्म हो गई हैं.”
“नहीं बेटा, ये दुख के नहीं, ख़ुशी के आंसूं हैं. तुम ने भी बहुत दुख देखे हैं. हम तेरी छोटी ख्वाहिशें भी हम पूरा नहीं कर पाते थे. तेरे पापा की सीमित आय और पापा पर अपने भाईबहनों की ज़िम्मेदारी...”
“हां मां, ये पापा और आप दोनों के अच्छे कर्मों का फल है जो कुदरत ने मुझे आज इतनी ऊंचाई पर पहुंचाया है. “अब मेरी प्यारी मां, एक बात सुन लो, आप को और पापा को अब कोई काम करने नहीं दूंगा. बहुत हुआ काम. अब आराम से बैठ कर हुक्म चलाना.“
मांपिता संग आज अभिन्न भी भावी जीवन की ख़ुशियों का तानाबाना बुन रहा था. सुख की दस्तक ने जीवन में रंग भरने शुरू कर दिए थे.