कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
अनु की शादी के बाद भी कई दिनों तक सुधा अपनेआप को सामान्य नहीं कर पाई.  तुषार से मिल कर उसे भी अच्छा लगा था। वह एक सुलझा हुआ युवक था लेकिन एक बेरोजगार दामाद को अपनाने में उसे हिचक हो रही थी.  बेटी की खुशी के आगे उन्होंने कुछ नहीं कहा.
उन्हें यकीन था एक दिन अनु जरूर कुछ न कुछ अच्छा ही करेगी.  कुछ ही महीने में अनु की मेहनत रंग लाई. उस ने पीसीएस की मुख्य परीक्षा पास कर ली थी. अनु ने साक्षात्कार की बहुत अच्छी तैयारी की थी पर वह  उस में रह गई। तुषार अभी भी संघर्षरत था. उन दोनों को इस बात का काफी मलाल हुआ. ऐसी परिस्थिति में भी तुषार ने अनु को हिम्मत बंधाई,"अनु, तुम्हें दिल छोटा नहीं करना चाहिए. तुम बहुत मेहनती और होशियार हो. एक दिन तुम्हें अपनी मेहनत का पूरा श्रेय जरूर मिलेगा."
"तुषार, तुम ही तो मेरी प्रेरणा हो. तुम्हारी बातों से मुझे बड़ी हिम्मत मिलती है. मैं और मेहनत करूंगी और एक दिन कुछ बन कर दिखाऊंगी," अनु बोली.
इसे कोई संयोग ही कहें कि जितना उस ने सोचा था, वह वहां तक न पहुंच पाई.  नेट परीक्षा उत्तीर्ण करने के कारण उस का यूनिवर्सिटी में असिस्टैंट प्रोफैसर के लिए चयन हो गया था. परिस्थितियों को देखते हुए अनु ने यह जौब खुशीखुशी स्वीकार कर लिया. अब उसके सामने आर्थिक परेशानी नहीं थी.
2 महीने बाद तुषार का सिलैक्शन  यूपीएससी परीक्षा के माध्यम से ही समीक्षा अधिकारी के लिए हो गया था। दोनों बेहद खुश थे. आखिरकार उन्हें एक ही शहर में नौकरी तो मिल गए थी. ये नौकरियां उन के योग्यता और सपनों के अनुरुप नहीं थीं लेकिन घरगृहस्थी चलाने के लिए पर्याप्त थीं. अनु ने यह खबर मम्मीपापा को सुनाई तो उन्हे ज्यादा खुशी नहीं हुई.
सुधा बोली,"अनु, तुम आगे भी  तैयारी करते रहना. यह नौकरी तो तुम्हें इसी शहर में रह कर पढ़ने से भी मिल सकती थी."
"आप बिलकुल ठीक कहती हैं, मम्मी. मैं आगे भी प्रयास करती रहूंगी."
अनु अपने काम के प्रति बहुत समर्पित थी. वह पीएचडी करना चाहती थी ताकि अपने कैरियर में किसी से पीछे न रहे. नेट की बदौलत वह इस नौकरी तक पहुंच गई थी. तुषार के सहयोग के कारण उसे आगे पढ़ने में कोई परेशानी नहीं थी.  वे दोनों अभी भी प्रतियोगिताओं की तैयारी कर रहे थे पर उन का समय  साथ नहीं दे रहा था. तुषार की नौकरी लगने के सालभर बाद अनु ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया. सुधा ऐसे समय में बेटी को अकेले पा कर मात्र 2 हफ्ते के लिए अनु के पास आई थी.  उस के नर्सिगहोम से घर आ जाने पर वह वापस लौट आई थी. तुषार जिस तरह से अनु का खयाल रखता था, सुधा उस से संतुष्ट थी.
अनु के 6 महीने मातृत्व अवकाश के साथ आराम से कट गए. उस ने कुछ महीने और शिशु देखभाल अवकाश ले लिया था. अब नौकरी के साथसाथ बच्चे को देखने के लिए एक आदमी की घर पर जरूरत थी. अनु ने कहा,"तुषार, क्यों न हम अपने पेरैंट्स को यहां बुला लें."
"क्या उन का दिल हमारे साथ लगेगा? हम एक छोटे से फ्लैट में रहते हैं. मम्मीपापा को इस प्रकार से रहने की आदत नहीं है."
"तुम ठीक कहते हो. उन के लिए यह घर जेल के समान हो जाएगा, भले ही हम अपनी ओर से उन:के लिए कोई कसर नहीं रखेंगे. एक सामान्य जिंदगी जीने वाले को बड़े शहरों की  आदत नहीं होती. उन की अपनी एक दिनचर्या है, जिसे वे यहां अच्छे से नहीं निभा पाएंगे। इस के साथ एक दूसरी बात भी है."
"वह क्या?"
"तुम तो जानती हो कि उन के सपनों को तोड़ कर हम दोनों ने शादी की. उन की अपेक्षाएं हम से कुछ और थीं और हम उन के अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे. हमें देख कर उन्हें यह बात भी याद आती रहेगी. अच्छा होगा कि हम बच्चे की देखभाल के लिए एक आया रख लें."
जल्दी ही अनु ने अपने सहकर्मियों की मदद से एक आया का इंतजाम कर दिया पर उस के भरोसे रिया को छोड़ने में दोनों को बड़ी परेशानी हो रही थी. किसी तरह 2 महीने बीते.  एक बार रिया की तबियत बिगड़ गई. ‌ऐसी हालत में उन की हिम्मत रिया को आया के भरोसे छोड़ने की न हो सकी. तब समस्या का समाधान तुषार ने निकाला,"अनु, मैं कुछ समय के लिए रिया की देखभाल के लिए छुट्टी ले लेता हूं."
"यह क्या कर रहे हो तुम?"
"मैं ठीक कह रहा हूं. हम दोनों में से छुट्टी कोई भी ले क्या फर्क पड़ता है? बच्चा हमारा है. इतने महीने तुम उस की देखभाल कर चुकी हो.  तुम्हें अभी अपना पीएचडी का काम भी पूरा करना है. मैं औफिस से छुट्टी ले लेता हूं."
"तुम्हें छुट्टी कहां मिलेगी?"
"तो क्या हुआ? अवैतनिक अवकाश ले लूंगा.  हमारे बच्चे की परवरिश में कोई कसर नहीं रहनी चाहिए," तुषार ने बोला तो अनु उस के परिवार के प्रति समर्पण को देख कर नतमस्तक हो गई.
वैसे तो उन के घर में भी काम करने  वाले आते थे लेकिन उन के ऊपर भी देखभाल के लिए घर पर कोई तो चाहिए था.  तुषार ने यह जिम्मेदारी बडे अच्छे से संभाल ली.  रिया बड़ी हो रही थी.  अनु उस की ओर से बिलकुल बैफिक्र थी.  तुषार एक जिम्मेदार पिता की तरह उस की बहुत अच्छी देखभाल करता.  शाम को अनु थक कर घर आती तो उस के साथ भी बहुत अच्छा व्यवहार करता. अनु अपनेआप को धन्य मानती कि उसे पति के रूप में तुषार मिला. अनु ने यह बात मम्मी को बताई कि अब तुषार नौकरी छोड़ कर बच्चे की देखभाल करेंगे."
"मम्मी, रिया हम दोनों की बेटी है. क्या फर्क पड़ता है कि देखभाल मैं करूं या तुषार करें?"
"बेटी, यह काम औरतों को ही शोभा देता है."
"मम्मी, आप तुषार से मिल चुकी हैं. वे बहुत ही अच्छे इंसान है. उन्होंने मुझे कभी एहसास तक नहीं होने दिया कि मैं एक औरत हूं और वे मेरे पति। वे घर को मुझ से अच्छे तरीके से संभालते हैं और बेटी का भी बहुत ध्यान रखते हैं."
"तो क्या घर तेरी तनख्वाह से चलेगा बेटी?"
"परिवार के बीच में तेरामेरा कहां से आ गया मम्मी? मेरा और तुषार का जो कुछ है वह हम सब का है.  इस से क्या फर्क पड़ जाता है कि घर कौन चला रहा है? फर्क इस बात से पड़ता है कि घर अच्छे से चलना चाहिए. उस में सब के लिए स्थान होना चाहिए. सब की कद्र होनी चाहिए.  रिया को घर पर आया कि नहीं मम्मीपापा की जरूरत है.  तुषार उस की बहुत अच्छे से देखभाल करते हैं. अगर तुम्हें कुछ गलत लगता है तो तुम यहां आ जाओ."
"तुम तो जानती हो कि मैं तुम्हारे पापा को अकेले नहीं छोड़ सकती और  इतने दिन वे बेटी के घर पर रहेंगे नहीं."
"तो तुम ही बताओ कि रिया की देखभाल कौन करेगा?"
"तुम तुषार के मम्मीपापा को बुला लो."
"वह भी तो आप की ही तरह हैं. आप यह क्यों नहीं समझतीं?" अनु बोली तो सुधा चुप हो गई. उन्हें जरा भी अच्छा नहीं लगा था कि दामाद नौकरी से छुट्टी ले कर घर बैठ कर औरतों की तरह अपनी बेटी की देखभाल कर रहा है.  इस दौरान वे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी करते रहे पर सफलता हाथ नहीं लगी.
समय कट रहा था. 3 साल बाद अनु ने एक और बेटी प्रिया को जन्म दिया. मातृत्व अवकाश में अनु ने  घर संभाला. उस ने बच्चों की देखभाल के लिए 1 साल की और छुट्टी ली. उस के बाद बच्चों को देखने की समस्या फिर खड़ी हो गई थी.  तुषार बच्चों की परवरिश में कोई भी कसर नहीं छोड़ना चाहता था.
वह इस पक्ष में नहीं था कि बच्चों को दिनभर आया के हवाले छोड़ कर खुद नौकरी पर जाया जाए. वह जानता था कि शाम को जब थक कर मम्मीपापा दोनों घर आते हैं तो उन के तनाव का बच्चों पर क्या असर पड़ता है. वे किस तरह से बच्चों की परवरिश के लिए एकदूसरे को जिम्मेदार ठहराते हैं.  समस्या गंभीर थी और इस का हल निकालना भी जरूरी था.
एक दिन तुषार बोला,"मैं सोचता हूं कि नौकरी छोड़ कर अपना समय परिवार को दे दूं."
"नहीं, तुषार नौकरी छोड़ने की नौबत आई तो नौकरी मैं छोङूंगी तुम नहीं."
"भला क्यों?"
"एक पुरुष का इस तरह नौकरी छोड़ कर अपने को घर पर कैद कर लेना किसी को भी अच्छा नहीं लगता."
"मैं किसी की नहीं तुम्हारी बात पूछ रहा हूं. तुम तो जानती हो घर पर रह कर भी मैं अपने लिए कुछ न कुछ काम ढूंढ़ ही लूंगा. मुझे जितना वक्त मिलेगा उस दौरान मैं मार्केटिंग का औनलाइन काम कर लूंगा."
"यह काम इतना सरल नहीं है."
"मन में लगन हो तो कठिन काम भी सरल हो जाते हैं. तुम्हें मुझ पर भरोसा तो है?"

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...